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________________ कृष्णपक्ष १०६ नियुक्तिपंचक ठहराव का आधा समय तिथि के प्रारम्भिक काल में जोड़ने या समाप्ति काल में से घटाने पर करण का समाप्ति काल आ जाता है। जिन तिथियों में विष्टिकरण होता है, उन तिथियों को भद्रा तिथि कहा जाता है। भद्रातिथि में शुभकार्य वर्जित रहते हैं। विष्टि के अतिरिक्त शेष करण शुभ माने जाते हैं। ध्रुवकरण शुभ नहीं माने जाते। जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति में कौन सी तिथि को कौन सा करण होता है, इसका उल्लेख मिलता है। उसका चार्ट इस प्रकार है शुक्लपक्ष तिथि पूर्वार्द्धकरण उत्तरार्धकरण तिथि। पूर्वार्द्धकरण उत्तरार्धकरण बालव कौलव किंस्तुघ्न बव स्त्रीविलोकन गर बालव कौलव वणिज विष्टि स्त्रीविलोकन बालव वणिज विष्टि कौलव स्त्रीविलोकन बव बालव वणिज कौलव स्त्रीविलोकन विष्टि बव गर वणिज बालव कौलव विष्टि स्त्रीविलोकन गर बालव कौलव वणिज विष्टि स्त्रीविलोकन गर बालव वणिज विष्टि स्त्रीविलोकन बव बालव १३. गर वणिज कौलव स्त्रीविलोकन १४. विष्टि शकुनि गर वणिज १५. चतुष्पाद नाग विष्टि and mx 5 w a vaan oma बव कौलव १५ बव नियुक्तिकार ने यह प्रसंग ज्योतिष्-शास्त्र से प्रसंगवश लिया है। यद्यपि उन्होंने करण की विस्तृत व्याख्या नहीं की है लेकिन जितना वर्णन है, वह ज्योतिष्-विद्या की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। काव्य नियुक्तिकार को काव्य-साहित्य का भी गहरा ज्ञान था। समकालीन अनेक काव्य ग्रंथ उनके दृष्टिपथ से गुजरे, ऐसा प्रतीत होता है। ‘पद' का वर्णन करते हुए प्रसंगवश उन्होंने काव्य के अनेक तत्त्वों पर विस्तृत प्रकाश डाला है। नियुक्तिकार ने काव्य के अंतर्गत ग्रथित पद के चार भेद किए हैं:१. गद्यकाव्य २. पद्यकाव्य ३. गेयकाव्य ४. चौर्णकाव्य। ठाणं सूत्र में काव्य के चार भेदों में चौर्ण के स्थान पर कथ्य काव्य नाम मिलता है। कथ्य काव्य कथात्मक होता है। मुख्यत: काव्य के दो ही प्रकार होते हैं—गद्य और पद्य । आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार चौर्ण और गेय काव्य के स्वतंत्र प्रकार नहीं हैं अत: ये गद्य के ही अवान्तर भेद हैं। फिर भी स्वरूप की विशिष्टता ३. ठाणं ४/६४४। १. जंबू ७/१२५ । २. दशनि १४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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