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________________ २० आवश्यक नियुक्ति ५९५/६-८. सिद्धों की अवगाहना कहां? कैसे? ५९५/९. भिन्नाकार का संबंध कर्म से लेकिन सिद्ध कर्म-मुक्त । ५९५/१०,११. सिद्धों का संस्थान। ५९५/१२-१४. सिद्धों की उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य अवगाहना। ५९६. सिद्धों के संस्थान का लक्षण । ५९७,५९८. सभी सिद्ध अन्योन्य समवगाढ तथा सबके द्वारा लोकान्त का स्पर्श । ५९९. सिद्धों के लक्षण। ६००. केवलज्ञान और केवलदर्शन के विषय की अनंतता। ६०१. क्या केवलज्ञान एवं केवलदर्शन युगपद् होते हैं ? ६०२-६०८. सिद्धों के अव्याबाध सुख का निरूपण एवं तुलना। ६०९. गुण के आधार पर सिद्धों के पर्यायवाची शब्द। ६१०. सिद्धों का वैशिष्ट्य। ६११-६१४. सिद्धों को नमस्कार का लाभ । ६१५. आचार्य के चार निक्षेप। ६१५/१. आचार्य का निरुक्त। ६१६. भाव आचार्य का स्वरूप। ६१७-६२०. आचार्य के नमस्कार का फल। ६२१. उपाध्याय शब्द के चार निक्षेप। ६२२. उपाध्याय का स्वरूप। ६२३, ६२४. उपाध्याय शब्द का निरुक्त। ६२५-६२८. उपाध्याय के नमस्कार की फलश्रुति । ६२९. साधु शब्द के चार निक्षेप। ६३०. द्रव्य साधु का स्वरूप। ६३१. भाव साधु का स्वरूप। ६३२-६३४. भाव साधु को नमस्कार क्यों? ६३५-६३८. साधु के नमस्कार की फलश्रुति। ६३८/१. पंच नमस्कार सभी मंगलों में उत्कृष्ट । ६३९. पंचपद नमस्कार न संक्षिप्त है और न विस्तृत। पंचविध नमस्कार का सहेतुक निरूपण। नमस्कारपद का क्रम-न पूर्वानुपूर्वी और न पश्चानुपूर्वी । ६४२. अर्हत् को वंदना पहले क्यों? | ६४३, ६४४. नमस्कार करने का प्रयोजन एवं लाभ। ६४५. नमस्कार की फलश्रुति के दृष्टान्त। ६४०. ६४१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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