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________________ आवश्यक नियुक्ति ५७४. ५७५, ५७६. ५७७. ५७८,५७९. ५८०. ५८०/१. ५८१. ५८२. ५८२/१-१३. ५८३. ५८४-५८७. ५८८. ५८८/१, २. ५८८/३. ५८८/४, ५. ५८८/६. ५८८/७. ५८८/८. ५८८/९. ५८८/१०. ५८८/११. ५८८/१२-१५. ५८८/१६-१८. ५८८/१९, २०. ५८८/२१-२४. ५८८/२५. ५८९. ५९०. ५९१. ५९२. ५९३. ५९४,५९५. ५९५/१-५. नमस्कार के नवपदप्ररूपणा के द्वारों की व्याख्या। सत्पद प्रतिपन्न तथा प्रतिपद्यमान की मार्गणा के बीस द्वार। नमस्कार प्रतिपन्नक जीवों की संख्या। कालद्वार एवं भावद्वार का विमर्श। भावद्वार एवं वस्तुद्वार का निरूपण। नमस्कार की नवविध प्ररूपणा का संकेत। पंचविध नमस्कार करने के हेतु। अर्हत् के तीन गुण। अर्हत् के गुणों का विस्तृत वर्णन। अर्हत् के तीन गुण। अर्हत् को नमस्कार करने की फलश्रुति । सिद्ध शब्द के चौदह निक्षेप। कर्मसिद्ध की व्याख्या एवं उदाहरण । शिल्पसिद्ध का उदाहरण। विद्यासिद्ध का स्वरूप एवं उदाहरण। मंत्रसिद्ध का स्वरूप एवं उदाहरण। योगसिद्ध का स्वरूप एवं उदाहरण। आगमसिद्ध एवं अर्थसिद्ध का उदाहरण। यात्रासिद्ध का उदाहरण। बुद्धिसिद्ध का प्रतिपादन। औत्पत्तिकी आदि चार प्रकार की बुद्धियों का नामोल्लेख। औत्पत्तिकी बुद्धि के लक्षण एवं उदाहरण । वैनयिकी बुद्धि के लक्षण एवं उदाहरण । कार्मिकी बुद्धि के लक्षण एवं उदाहरण। पारिणामिकी बुद्धि के लक्षण एवं उदाहरण। तपःसिद्ध एवं कर्मक्षयसिद्ध का प्रतिपादन। सिद्धत्व की प्राप्ति कैसे? केवली द्वारा समुद्घात कब? कैसे और क्यों? समुद्घात की प्रक्रिया। समुद्घात से विशिष्ट कर्मक्षय कैसे? सिद्धों की ऊर्ध्वगति के तर्कसंगत दृष्टान्त। सिद्धों की अवस्थिति विषयक प्रश्न और समाधान। लोकान्त की अवस्थिति और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी का निरूपण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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