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१२
आवश्यक नियुक्ति
३३८.
जृम्भिकग्राम में शक्र का आगमन तथा मेंढिकग्राम में चमरदेव द्वारा सुखपृच्छा। ३३९.
छम्माणि गांव में महावीर द्वारा प्रतिमाग्रहण, ग्वाले द्वारा कानों में कीले ठोकना और
सिद्धार्थ वणिक् द्वारा चिकित्सा। ३४०. जृम्भिकग्राम में शालवृक्ष के नीचे बेले की तपस्या में महावीर को कैवल्यप्राप्ति । ३४१-३५०. महावीर की छद्मस्थकालीन तपस्या एवं प्रतिमाओं का विवरण। ३५१.
महावीर का छद्मस्थकाल। ३५२.
महावीर नामकरण क्यों? ३५३. कैवल्य-प्राप्ति के बाद उसी रात महावीर का महासेन वन के उद्यान में आगमन । ३५४. प्रथम समवसरण में देवताओं द्वारा पूजित तथा पावा में द्वितीय समवसरण की सार्थकता। ३५५.
सोमिलब्राह्मण का यज्ञवाटिका में आगमन। ३५६. यज्ञवाटिका की उत्तरदिशा में देवों द्वारा कैवल्य-उत्सव। ३५६/१. समवसरण संबंधी द्वारगाथा। ३५६/२. समवसरण-निर्माण की सामान्य विधि। ३५७-३६२/११. समवसरण की निर्माण-विधि, उसका वैशिष्ट्य, उसमें देव, मनुष्य आदि विभिन्न वर्गों
का प्रवेश तथा उनकी अवस्थिति आदि का वर्णन। ३६२/१२, १३. समवसरण में सामायिक की प्रतिपत्ति। ३६२/१४. तीर्थ को प्रणाम और भगवान् की देशना का वैशिष्ट्य। ३६२/१५. तीर्थंकर द्वारा तीर्थ को प्रणाम क्यों? ३६२/१६. साधु-साध्वियों के समवसरण में आने की इयत्ता और न आने पर प्रायश्चित्त। ३६२/१७, १८. तीर्थंकर के रूप का वैशिष्ट्य एवं उसकी तुलना। ३६२/१९. तीर्थंकर के संहनन, संस्थान आदि का उल्लेख। ३६२/२०. तीर्थंकर के श्रेष्ठतम प्रकृतियों का उदय। ३६२/२१. तीर्थंकर के असाता वेदनीय की भी शुभता। ३६२/२२. भगवान् के रूप-वैशिष्ट्य का प्रयोजन। ३६२/२३. भगवान् की देशना से संशय की व्यवच्छित्ति कैसे? ३६२/२४. भगवान् का युगपद् व्याकरण क्यों और उसका माहात्म्य। ३६२/२५. जिनेश्वर की वाणी सब भाषाओं में परिणत। ३६२/२६. तीर्थंकर वाणी के सौभाग्य गुण का प्रतिपादन। ३६२/२७. भगवद्वाणी के श्रवण की निरंतर आकांक्षा। ३६२/२८. चक्रवर्ती के प्रीतिदान का द्रव्य-परिमाण। ३६२/२९-३१. वासुदेव मांडलिक आदि का प्रीतिदान तथा उसके गुण। ३६२/३२-३५. देवमाल्य की विधि, उसके कर्ता, ग्रहण और उसके रोगोपशमन की शक्ति का वर्णन। ३६२/३६. भगवान् की देशना के बाद गणधर के प्रवचन का उपक्रम क्यों?
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