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________________ आवश्यक निर्युक्ति २७६. २७७, २७८. २७९. २८०, २८१. २८२. २८३. २८४-२८६. २८७-२९६. २९७. २९८-३०६. ३०७. ३०८. ३०९. ३१०. ३११. ३१२. ३१३. ३१४-३२८. ३२९. ३३०-३३०/२. ३३१. ३३२. ३३३. ३३४, ३३५. ३३६. ३३७. Jain Education International ११ ग्वाले के द्वारा ताड़ना देने पर इंद्र का आगमन, कोल्लाग सन्निवेश में बहुल ब्राह्मण के यहां प्रथम पारणा । तितक आश्रम में प्रथम वर्षावास, पांच अभिग्रह, अस्थिकग्राम में शूलपाणि यक्ष के आयतन में प्रतिमा का स्वीकरण । शूलपाणि यक्ष द्वारा रौद्र वेदना, महावीर को निद्रा में दस स्वप्नों का दर्शन, उत्पल द्वारा फलनिरूपण तथा अच्छंदक द्वारा महावीर की अवहेलना । सिद्धार्थ द्वारा महावीर को दिए गए विविध कष्ट एवं अन्य जीवन-प्रसंग । उत्तरवाचाला में चंडकौशिक सर्प को जातिस्मृति । उत्तरवाचाला में नागसेन द्वारा भिक्षा और श्वेतविका में पंचरथी नैयक राजाओं द्वारा भगवान् की स्तुति । महावीर का गंगा पार करने हेतु नौका विहार एवं उपद्रव । भगवान् महावीर के साथ गोशालक के विविध प्रसंग | लाढ प्रदेश में अनार्य लोगों द्वारा विविध उपसर्ग । गोशालक से संबंधित महावीर के विविध प्रसंग । गोशालक द्वारा तिलस्तंभ के बारे में प्रश्न तथा भगवान् का उत्तर । वैश्यायन बाल तपस्वी का विवरण । महावीर का वैशाली नगरी में प्रतिमाग्रहण, नदी पार करने हेतु महावीर का नौका- गमन । वाणिज्यग्राम में आनंद श्रावक को अवधिज्ञान, श्रावस्ती नगरी में भगवान् का दसवां वर्षावास एवं विचित्र तपोऽनुष्ठान । सानुष्टिक ग्राम में महावीर द्वारा भद्र, महाभद्र तथा सर्वतोभद्र प्रतिमा का अनुष्ठान । दृढ़ भूमि के पेढ़ाल उद्यान में एकरात्रिकी महाप्रतिमा । इंद्र द्वारा सुधर्मा सभा में महावीर की दृढ़ता की प्रशंसा । संगम देव के मन में ईर्ष्या और महावीर को छह मास तक विविध मारणांतिक कष्ट । इंद्र द्वारा संगम का देवलोक से निष्कासन तथा मंदरचूला पर उसका निवास । आलभिका नगरी में विद्युत्कुमार इंद्र का आगमन और महावीर को केवलज्ञान की पूर्वसूचना | कौशाम्बी नगरी के समवसरण में चंद्र और सूर्य का अवतरण । भूतानंद को प्रतिबोध, सुंसुमारपुर में चमर का उत्पात, भोगपुर में उपसर्ग | नंदिग्राम में महावीर का आगमन तथा मेंढिकग्राम में ग्वाले का उपद्रव । कौशाम्बी नगरी में चंदनबाला का घटना-प्रसंग तथा महावीर का अभिग्रह । सुमंगलाग्राम में सनत्कुमार का आगमन, सुच्छित्तिग्राम में माहेन्द्र द्वारा प्रियपृच्छा, वाइलवणिक् द्वारा भगवान् पर प्रहार । चंपानगरी के वर्षावास में यक्षों द्वारा प्रश्न । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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