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________________ ५१२ २०९. चरणाहत एक राजा तरुण अवस्था में था । तरुणों ने उसे भ्रमित करते हुए कहा - ' आप स्थविर कुमारामात्यों को हटा दीजिए। उनके स्थान पर तरुणों को रखिए।' राजा ने तरुणों की परीक्षा करने के निमित्त पूछा - 'जो मेरे सिर पर पैरों से प्रहार करे तो उसे क्या दंड देना चाहिए ? ' तरुणों ने तत्काल कहा - 'उसके तिल जितने छोटे-छोटे टुकड़े करके मरवा देना चाहिए।' राजा ने वही प्रश्न स्थविरों से पूछा । उन्होंने कहा - 'हम चिन्तन करके आपको उत्तर देंगे।' वे वहां से चले गए। उन्होंने जाकर चिंतन किया और राजा के पास आकर बोले- 'राजन् ! जो पैरों से राजा के सिर पर प्रहार करे उसका सत्कार-सम्मान करना चाहिए क्योंकि आपके सिर पर रानी के अलावा कौन प्रहार कर सकता है ? उत्तर सुनकर राजा प्रसन्न हुआ। यह राजा और स्थविर पुरुषों की पारिणामिकी बुद्धि थी । २१०. आंवला एक कुम्हार ने किसी व्यक्ति को बनावटी आंवला भेंट किया। वह आकार-प्रकार में आंवले जैसा ही लगता था । स्पर्श के आधार पर व्यक्ति ने जान लिया कि यह कृत्रिम आंवला है । यह उस व्यक्ति की पारिणामिकी बुद्धि थी । परि. ३ : २११. मणि एक सांप के मस्तक पर मणि थी। रात्रि के समय सर्प वृक्ष पर चढ़कर पक्षियों के अंडे खा जाता था। एक बार गृद्ध ने वृक्ष पर चढ़े उस सर्प को पक्षियों के घोसले में मार डाला। मणि नीचे कूप में गिर गई । उसका पानी मणि के प्रभाव से लाल हो गया। उस मणि को कूप से निकाल लेने पर पानी स्वाभाविक हो गया। एक लड़के को यह ज्ञात हुआ । उसने अपने स्थविर पिता से यह बात कही। स्थविर ने कूप से वह मणि निकाल ली। यह वृद्ध पुरुष की पारिणामिकी बुद्धि थी । १. आवनि ५८८/२४, आवचू. १ पृ. ५६६, ५६७, हाटी. १ पृ. २९१, मटी. प. ५३३ । २. आवनि ५८८ / २४, आवचू. १ पृ. ५६७, हाटी. १ पृ. २९१, मटी. प. ५३३ । ३. आवनि. ५८८ / २४, आवचू. १ पृ. ५६७, हाटी. १ पृ. २९१, मटी. प. ५३३ । ४. आवनि. ५८८ / २४, आवचू. १ पृ. ५६७, हाटी. १ पृ. २९१, मटी. प. ५३३ । कथाएं २१२. खड्गि किसी नगर में एक श्रावक का पुत्र यौवन के बल से मदोन्मत्त हो गया। वह धर्माचरण नहीं करता था अतः मर कर गेंडा बना। पक्षियों की पांखों की भांति उसके दोनों पाश्र्वों में चर्म लटकता था। अटवी में भूले-भटके व्यक्तियों और प्राणियों को वह मार डालता था। एक बार मुनि उसी मार्ग से जा रहे थे। वह वेग से उनको मारने आया परन्तु मुनियों के तेज से वह उन पर आक्रमण नहीं कर सका। वह चिन्तन करने लगा। उसे पूर्वजन्म की स्मृति हो गई और उसी समय उसने अनशन ग्रहण कर लिया। मरकर वह देवलोक में गया। वर्तमान भव को सुधारने हेतु गेंडे की यह पारिणामिकी बुद्धि थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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