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________________ ५०२ परि. ३ : कथाएं मित्र से याचित बैलों से उसने हल चलाया। एक दिन उसने विकाल वेला में बैलों को लाकर उस मित्र के बाड़े में छोड़ दिया। उस समय मित्र खाना खा रहा था । शर्म के कारण वह उसके पास नहीं गया। 'मित्र ने बैलों को देख लिया है' यह सोचकर वह अपने घर चला गया। असावधानी के कारण वे दोनों बैल बाड़े से निकलकर कहीं अन्यत्र चले गए। चोरों ने उनका अपहरण कर लिया। मित्र ने अपने हतभाग्य मित्र से बैल मांगे। बैल न देने के कारण वह उसे राजकुल में ले गया । जब वह मार्ग से जा रहा था तब रास्ते में उसे एक अश्वारोही मिला। घोड़े ने उसे गिरा दिया और भागने लगा। अश्वारोही बोला- 'अश्व भाग रहा है अतः इसको एक डंडा लगाओ ।' हतभाग्य पुरुष ने अश्व के मर्मस्थल पर प्रहार किया। एक ही प्रहार से अश्व मर गया। उसने भी उस हतभाग्य पुरुष को राजकुल में चलने के लिए कहा । चलते-चलते विकाल-वेला आ गयी अतः वे नगर के बाह्य भाग में ठहर गए। वहां वृक्ष के नीचे अनेक नट सोए हुए थे। हतभाग्य ने सोचा- 'राजकुल में मुझे जीवन भर कारागृह में डाल दिया जाएगा अतः अच्छा यही होगा कि मैं फांसी लगाकर मर जाऊं। वह वृक्ष पर चढ़ा और एक कपड़े को गले में बांधकर लटक गया। वस्त्र जीर्ण था अतः फट गया । हतभाग्य पुरुष नीचे गिरा, वहां नटों का सरदार सो रहा था। उसके भार से नट के सरदार का गला दब गया और वह मर गया। उन्होंने भी उसे बंदी बना लिया। राजकुल पहुंचकर तीनों ने अपनी-अपनी बात कही। अमात्यकुमार ने जब हतभाग्य पुरुष से पूछा तो उसने कहा- 'ये सभी सत्य कह रहे हैं।' साथ ही उसने यथार्थ स्थिति भी बता दी । अमात्यकुमार को उस पर दया आ गई। उसने फैसला करते हुए बैल के स्वामी से कहा- 'यह तुम्हें दो बैल देगा पर तुम्हारी दोनों आंखें निकाल लेगा क्योंकि तुमने अपनी आंखों से बाड़े में बैलों को देख लिया था।' अश्वारोही को बुलाकर अमात्यकुमार ने कहा- 'यह तुम्हें अश्व देगा पर तुम्हारी जीभ काट ली जाएगी क्योंकि तुमने स्वयं अपनी जीभ से इसे अश्व को डंडा मारने को कहा था।' नटों को बुलाकर कहा - 'यह वृक्ष के नीचे सो जाएगा। तुममें जो मुखिया है, वह वृक्ष पर चढ़कर फांसी का फंदा लगाकर नीचे गिरे।' अमात्यकुमार का न्याय सुनकर सभी ने उसे मुक्त कर दिया। कार्मिकी बुद्धि का दृष्टान्त १९३. किसान की कला एक बार एक चोर ने किसी सेठ के यहां पद्म के आकार की सेंध लगाई। प्रातः काल लोगों ने चोर के कला - चातुर्य की प्रशंसा की। वह चोर भी लोगों की प्रशंसा सुनने वहां आया। लोगों की प्रशंसा सुनकर एक किसान बोला- 'अभ्यास कर लेने पर कुछ भी दुष्कर नहीं होता।' चोर ने जब यह बात सुनी तो आगबबूला हो गया। चोर ने लोगों से उसका परिचय पूछा। एक दिन उसको खेत में खड़ा देखकर वह उसके पास आया और बोला- 'मैं तुम्हें अभी अपनी छुरी से मारता हूं।' किसान ने इसका कारण पूछा तो चोर बोला- 'उस दिन तुमने मेरे द्वारा लगाई गयी सेंध की प्रशंसा नहीं की थी।' उसकी बात सुनकर किसान १. आवान. ५८८ / १८, आवचू. १ पृ. ५५५, ५५६, हाटी. १ पृ. २८४, मटी. प. ५२५, ५२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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