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परि. ३: कथाएं वैनयिकी बुद्धि के दृष्टान्त १८०. निमित्त
एक सिद्धपुत्र था। उसने अपने दो शिष्यों को निमित्तशास्त्र का अध्ययन करवाया। दोनों शिष्यों में एक गुरु के प्रति अत्यंत विनीत था। विमर्शपूर्वक गुरु के पास अध्ययन करने से उसकी प्रज्ञा प्रकर्ष को प्राप्त हो गयी। दूसरा शिष्य अविनीत था। उसने केवल ग्रंथों का अध्ययन किया, उसका चिंतन नहीं किया अतः उसकी प्रज्ञा का विकास नहीं हुआ।
एक बार तृण, काष्ठ आदि लाने के लिए वे समीपवर्ती गांव में गए। रास्ते में उन्होंने बड़े-बड़े पदचिह्नों को देखा। अविनीत शिष्य तत्काल बोला- 'ये हाथी के चिह्न हैं।' विनीत शिष्य ने चिंतनपूर्वक उत्तर दिया- 'ये हाथी के नहीं, हथिनी के चिह्न हैं और वह बांई आंख से कानी है। हथिनी पर लाल वस्त्र पहने रानी बैठी है और वह गर्भवती है। शीघ्र ही वह पत्र का प्रसव करेगी।' नदी के किनारे जाने पर पता चला कि विनीत शिष्य की बात सही थी। अविनीत शिष्य ने पूछा- 'तुम्हें ये सारी बातें कैसे ज्ञात हुईं।' उसने कहा- 'प्रस्रवण भूमि को देखकर मैंने जाना कि ये पैर हथिनी के हैं। दक्षिण पार्श्व की लताएं एवं तृण खाए हुए थे, इस आधार पर मैंने जाना कि हथिनी बांयी आंख से कानी है। हथिनी पर आरूढ व्यक्ति ने एक स्थान पर उतरकर प्रस्रवण किया उसके आधार पर मैंने जाना कि वह स्त्री है। हथिनी पर कोई सामान्य व्यक्ति आरूढ नहीं हो सकता, इसके आधार पर मैंने निश्चय किया कि वह रानी होनी चाहिए। वृक्ष पर लाल वस्त्र की किनारी का हिस्सा देखकर मैंने अनुमान किया कि वह सधवा स्त्री होनी चाहिए। प्रस्रवण करके जब वह उठी तो भूमि पर हाथ के सहारे से उठी, इस आधार पर मैंने जाना कि वह गर्भवती थी। उसका दाहिना पैर भारी था, इससे ज्ञात हुआ कि शीघ्र ही वह पुत्र को जन्म देगी।
इसके बाद दोनों मित्र नदी के तट पर पहुंचे। एक वृद्धा पानी से भरा घट सिर पर लेकर उधर आई। दोनों को आकृति से विद्वान् जानकर वह उनके पास आकर बोली- 'मेरा पुत्र देशान्तर गया हुआ है, वह वापिस कब आएगा?' प्रश्न पूछते ही उसके सिर पर रखा हुआ घड़ा गिरकर फूट गया। अविमृश्यकारी शिष्य तत्काल बोला- 'तेरा पुत्र मर गया।' विमृश्यकारी शिष्य बोला- 'ऐसा मत कहो। बुढ़िया मां! तुम घर जाओ, तुम्हारा पुत्र घर पहुंच गया है, वह तुम्हें मिल जाएगा।' बुढ़िया उसको आशीर्वाद देती हुई घर पहुंची। बुढ़िया ने देखा कि पुत्र पहले ही घर आया हुआ था। वह कुछ रुपए एवं वस्त्र-युगल लेकर विनीत शिष्य के पास आई और उसका सत्कार-सम्मान करके बोली-'तुम्हारा कथन सत्य हुआ, मेरा बेटा घर पर आ गया है।' बुढ़िया ने कहा- 'तुम दोनों की बात में इतने अंतर का कारण क्या है?' अविनीत शिष्य बोला- 'घड़े फूटने के आधार पर मैंने कहा कि तुम्हारा पुत्र मर गया।' विनीत शिष्य बोला- 'जो भूमि से उत्पन्न हुआ था, वह भूमि में मिल गया, इस आधार पर मैंने जाना कि तुम्हारा पुत्र तुम्हें मिल जाएगा।'
कार्य सम्पन्न कर दोनों शिष्य गुरु के पास आए। गुरु के दर्शन करते ही विमृश्यकारी शिष्य ने सिर झुकाकर बहुमानपूर्वक गद्गद हृदय से गुरु को प्रणाम किया लेकिन दूसरा शिष्य ऐसे ही खड़ा रहा। उसने गुरु के चरणों में प्रणिपात नहीं किया।
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