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आवश्यक नियुक्ति
४६७ स्वीकृति दी। तब रस्सी से उसने कुंए में कुर्सी उतारी। कुर्सी पर पहले सारा सूत उतारा फिर दोनों पुत्रों को तथा बाद में तीसरे पुत्र के साथ वह बाहर आई। सारी बात सुनकर वह उस पर प्रसन्न हो गया और उसे गृहस्वामिनी बना दिया। शुक बोला-'इसलिए वह वणिक्पुत्री पंडिता थी, मैं नहीं।'
देवदत्ता ने फिर तोते की पांख उखाड़ी और कहा- 'तुम पंडित हो।' शुक बोला- 'पंडित मैं नहीं, पंडिता तो कौलजातीय वह स्त्री है।' एक कौलजातीय कुमारी कन्या थी। उसके माता-पिता एक दिन गांव चले गए अत: घर में वह अकेली थी। एक दिन एक चोर उसके घर घुस गया। वह उसको विश्वास दिलाती हुई बोली- 'मेरी शादी मेरे मामा के पुत्र से होगी। जब मेरे पुत्र होगा तो उसका नाम चन्द्र रखा जाएगा।' बड़ा होने पर मैं उसे इस प्रकार आवाज दूंगी-'ओ चन्द्र इधर आ।' उसकी तेज आवाज सुनकर पड़ोसी चन्द्र आवाज करता हुआ वहां आया। उसे देखकर चोर भाग गया अत: पंडिता वह कौलजातीय कन्या थी, मैं नहीं।
माहेश्वर पुत्री ने पुनः तोते की एक पांख उखाड़कर कहा- 'तुम पंडित हो।' तोते ने कहा'पंडित मैं नहीं, वह कुलपुत्र की दारिका है।' जिज्ञासा करने पर तोते ने कथा प्रारंभ की-'बसंतपुर नगर में जितशत्रु राजा था। उसके कुलपुत्र के एक पुत्री थी।' एक बार राजा ने कहा- 'जो मुझे असत् वस्तु का विश्वास दिला देगा, उसे मैं प्रचुर भोग सामग्री दूंगा।' वह कुलपुत्र सूर्यास्त के पश्चात् घर पहुंचा। उसकी पुत्री ने पूछा- 'आज सूर्यास्त के पश्चात् क्यों आए?' कुलपुत्र ने कहा- 'राजा ने आज घोषणा की है कि जो उसे असत् बात का विश्वास दिला देगा, उसको वह प्रचुर भोग-सामग्री देगा।' राजा की बात पर विचार करते-करते सूर्यास्त हो गया। उसकी पुत्री ने कहा- 'मैं राजा को विश्वास दिला दूंगी।' कुलपुत्र उसे राजा के पास ले गया। वह राजा से बोली- 'मैं घर में सबसे बड़ी कन्या हूं। मेरा विवाह मातुल पुत्र से किया गया। मेरे माता-पिता प्रवास पर चले गए।' एक बार वह मातुल पुत्र अतिथि के रूप में आया। वह मेरे हृदय में अवस्थित था अतः उसका खूब आतिथ्य किया। रात को उसे सर्प ने काट लिया। वह मर गया। रात्रि में ही मैं उसे श्मशानघाट ले गयी। वहां भयंकर शिव आदि देव उपद्रव करने लगे।' राजा ने बीच में पूछा'क्या तुमको भय नहीं लगा?' वह बोली- 'यदि यह बात सत्य होती तो भय लगता।' राजा पराजित हो गया।
___ इस प्रकार उस तोते ने वणिक्दारिका, तिलखादिका, कोलिणी आदि ५०० कथानक सुनाए। कथानक सुनते-सुनते रात बीत गई। उसने पंखविहीन उस तोते को मुक्त कर दिया। सम्यक् प्रकार उड़ने का सामर्थ्य न होने के कारण उस तोते को एक बाजपक्षी ने पकड़ लिया। दो बाजपक्षियों के लड़ने के कारण वह अशोकवनिका में गिरा। वहां एक दासी-पुत्र ने उसे देखा। तोते ने दासी-पुत्र से कहा- 'तुम मेरी रक्षा
और पालन-पोषण करो, समय आने पर मैं तुम्हारा काम करूंगा। उस दासीपुत्र ने उसका पोषण एवं संरक्षण किया।
संतान न होने के कारण राजा किसी अन्य को राज्य दे रहा था। वह तोता एक मिट्टी के मयूर के साथ लगकर रात को राजा से बोला- 'तुम दासी-पुत्र को राज्य दो।' राजा ने उसे राज्य दे दिया। राजा बने दासी-पुत्र से शुक ने सात दिन के लिए राज्य मांगा। १. मटी में यह कथा अनुपलब्ध है तथा हाटी में अत्यंत संक्षेप में कथा का संकेत मात्र है।
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