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________________ ३७८ परि. ३ : कथाएं ताड़ना वृत्तान्त सुना। अपने निमित्तबल से उसने जान लिया कि ये तीर्थंकर हैं । ये कभी खिन्न नहीं होते। लोग उस यक्षायतन में रात में जाने से डरते थे। जब व्यन्तर देव ने देखा कि अट्टहास से यह मुनि भयभीत नहीं हुआ है तब उसने हाथी का रूप बनाकर उपसर्ग देना प्रारंभ किया। फिर पिशाच का रूप बनाया, फिर भयंकर नाग का रूप विकुर्वित किया। जब इन सबसे भी देवार्य प्रकंपित नहीं हुए तब देव ने सात प्रकार की रौद्र वेदनाएं उदीरित कीं - शीर्षवेदना, कर्णवेदना, चक्षुवेदना, नासावेदना, दंतवेदना, नखवेदना तथा पीठवेदना । एकएक वेदना भी सामान्य मनुष्य का जीवन- हरण करने वाली थीं। उसका क्या कहना जब सातों वेदनाएं एक साथ उत्पन्न हों। भगवान् ने सभी वेदनाओं को समभाव से सहन किया। जब देव इन सब उपसर्गों से देवार्य को क्षुब्ध करने या चलित करने में समर्थ नहीं हुआ तब परितप्त होकर वह देवार्य के चरणों में लुठकर क्षमायाचना करता हुआ बोला- 'भट्टारक ! आप मुझे क्षमा करें।' तब सिद्धार्थ देव उस व्यन्तर को देते हुए बोला- 'दुष्ट शूलपाणियक्ष ! अप्रार्थितप्रार्थक ! तुम नहीं जानते, ये महाराज सिद्धार्थ के पुत्र हैं। ये तीर्थंकर हैं।' यदि शक्र को तुम्हारी चेष्टाओं का पता लग गया तो वह तुमको स्थान से च्युत कर देगा । तब वह व्यन्तर भयभीत होकर बार-बार क्षमायाचना करने लगा। सिद्धार्थ देव ने उसे धर्म का रहस्य बताया। वह व्यन्तर उपशांत होकर देवार्य की महिमा और स्तुति - पूजा करने लगा। लोगों ने सोचा- 'यक्ष देवार्य को मार कर अब क्रीडा कर रहा है, नाचगान कर रहा है।' उस यक्षायतन में देवार्य कुछ न्यून चार प्रहर तक अत्यन्त परितापित होते रहे थे अतः परिश्रान्त होने के कारण प्रभातबेला में मुहूर्त्तमात्र काल तक भगवान् निद्राप्रमाद में गए। निद्रा में दस महास्वप्नों को देखकर वे जागृत हुए। वे दस स्वप्न ये थे - १. तालपिशाच को मार गिराना, २ . श्वेत पक्षी ३. चित्रकोकिल को पर्युपासना करते देखना, ४. सुरभित पुष्पों की दो मालाएं, ५. पर्युपासना करने वाला गोवर्ग, ६. विकसित कमलों से परिपूर्ण पद्मसरोवर, ७. सागर में स्वयं को तैरते देखना, ८. प्रकीर्ण रश्मिमंडल से सूर्य को उगते हुए देखना, ९ आंतों से मानुषोत्तरपर्वत को वेष्टित करते हुए देखना, १०. स्वयं का मन्दर पर्वत पर आरोहण । ६१. उत्पल द्वारा स्वप्नों का अर्थ-कथन प्रात:काल हुआ। उत्पल, पुजारी इन्द्रशर्मा तथा अन्य लोग वहां आए। उन्होंने यक्षायतन के प्रांगण में दिव्य सुगंधित चूर्ण तथा पुष्पों की वृष्टि देखी तथा देवार्य को अक्षत अंग-प्रत्यंग वाला देखा। वे सभी लोग देवार्य की उत्कृष्ट जय-जयकार करते हुए चरणों में लुठकर बोले- 'आपने देव को उपशान्त कर दिया । आप महिमा को प्राप्त हुए । ' उत्पल भी स्वामी को देखकर वन्दना करता हुआ बोला- 'स्वामिन्! आपने रात्रि के अन्त में दस स्वप्न देखे थे, उनका फल इस प्रकार है- आपने तालपिशाच को पछाड़ा, इसके फलस्वरूप आप शीघ्र ही मोहनीय कर्म का उन्मूलन करेंगे। शुक्ल पक्षी को देखने का तात्पर्य है कि आप शुक्लध्यान में आरूढ होंगे। विचित्र कोकिल को देखना इस बात का द्योतक है कि आप द्वादशांगी की रचना करेंगे। गोवर्ग इस बात का प्रतीक है कि आप चतुर्विध संघ की स्थापना करेंगे। पद्मसरोवर देखने का अर्थ है कि चार प्रकार के देव निकायों का संघात आपकी सेवा में उपस्थित रहेगा। सागर को तैरने का अर्थ भव १. आवनि. २७९, आवचू. १ पृ. २७३, २७४, हाटी. १ पृ. १२७, १२८, मटी. प. २६९, २७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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