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आवश्यक नियुक्ति
उसको प्रचुर धन प्रदान करता ।
६. अमात्य की अनुप्रेक्षा
राजा और अमात्य-दोनों घोड़े पर सवार होकर घूमने निकले। चलते-चलते वे विषम भूमि में पहुंचे। दोनों घोड़े वहां रुके। राजा के घोड़े ने प्रस्रवण किया। छोटे से गढ़े में वह प्रस्रवण स्थिर हो गया। नगर की ओर लौटते हुए राजा उसी रास्ते से आया। उसने उस स्थान ( जहां अश्व ने मूत्र किया था) को ध्यान से देखा और मन ही मन सोचा कि यहां तालाब हो तो अच्छा रहेगा। पानी स्थिर रह सकेगा । उसने अमात्य से कुछ नहीं कहा। अमात्य इंगित और आकार का जानकार था। उसने राजा के मनोभावों को जान लिया और कुछ ही समय में राजा को ज्ञात किए बिना ही वहां एक बड़े तालाब को खुदवाकर उसके चारों ओर सुन्दर बगीचे का निर्माण करा दिया। कुछ समय पश्चात् राजा अमात्य के साथ उसी रास्ते से अश्ववाहनिका के लिए निकला। मार्गगत सुन्दर और सुरम्य तालाब को देखकर राजा ने अमात्य से पूछा'यह तालाब किसने खुदवाया है ?' अमात्य बोला- 'राजन् ! यह आपने ही खुदवाया है।' राजा ने पूछा‘मैंने कैसे ?' अमात्य बोला- 'आपने इस स्थान को बहुत ध्यानपूर्वक देखा था। मैंने आपके मनोभाव को जानकर यह काम करवाया है।' राजा मंत्री की दूसरे के चित्त को जानने की कला से बहुत प्रभावित हुआ। उसने प्रसन्न होकर अमात्य का वेतनवृद्धि तथा पारितोषिक द्वारा संवर्धन किया।
७. विनीत - अविनीत का परीक्षण
कान्यकुब्ज नगर में किसी राजा ने आचार्य के साथ गोष्ठी की । उस गोष्ठी में राजा कहा'राजपुत्र विनीत हैं।' आचार्य ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा - 'साधु अधिक विनीत होते हैं क्योंकि लौकिक विनय से लोकोत्तर विनय अधिक बलवान् होता है।' विवाद होने पर आचार्य बोले- 'तुम्हारा जो सबसे अधिक विनीत राजकुमार हो उसकी परीक्षा की जाए और हमारे साधुओं में आपको जो सबसे अधिक अविनीत प्रतीत हो, उस साधु की परीक्षा की जाए।' राजा ने यह बात स्वीकार कर ली।
राजा को जो राजकुमार सबसे अधिक विनीत प्रतीत हुआ, उसे आदेश देते हुए कहा - 'देखकर आओ कि गंगा किधर बह रही है ?' राजकुमार ने उत्तर दिया- 'इसको क्या देखना है ? यह बात तो एक बालक भी बता देगा कि गंगा पूर्व दिशा की ओर बह रही है।' राजा ने कहा- -'तुम यहीं खड़े रहकर क्यों बोल रहे हो, जाकर देख आओ कि गंगा किधर बह रही है ?' तब मन ही मन क्रोधित होता हुआ वह बहुत मुश्किल से उस स्थान से बाहर गया । मुख्यद्वार पर उसके किसी मित्र ने पूछा - 'मित्र ! तुम कहां जा रहे हो ?' उसने क्रोध में आकर कहा - 'जंगल में रोझ को नमक देने जा रहा हूं।' मित्र ने पूछा- 'क्या बात है, तुम इतने क्रोधित क्यों हो ?' राजकुमार ने अपने मित्र को राजा का आदेश सुना दिया। मित्र बोला- 'राजा
ग्रह लग गया तो क्या तुम भी ग्रह से आविष्ट हो जाओगे ? जाकर राजा को निवेदन कर दो कि मैंने देख लिया है कि गंगा पूर्व की ओर बह रही है।' राजकुमार ने गंगातट पर गए बिना ही राजा को बता दिया। राजा
१. आवचू. १ पृ. ८१, हाटी. १ पृ. ३७, मटी. प. ९२, चूर्णि में इस कथा का संकेत मात्र है। २. आवचू. १ पृ. ८१, हाटी. १ पृ. ३७, मटी. प. ९२, चूर्णि में इस कथा का संकेत मात्र है।
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