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________________ ३६ आवश्यक नियुक्ति भी दिया गया है। नमस्कार का विस्तृत विवेचन होने के कारण इसका नमस्कारनियुक्ति-यह स्वतंत्र नाम भी प्रसिद्ध हो गया है। इसके पश्चात् करण, भंते, सामायिक, सर्व, सावध, योग, प्रत्याख्यान और यावज्जीवन आदि सामायिक के पदों की व्याख्या की गयी है। कहा जा सकता है कि इस नियुक्ति में सामायिक पर तो सांगोपांग विवेचन मिलता ही है, साथ ही अन्य अनेक विषयों पर भी विशिष्ट जानकारी प्राप्त होती है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इस ग्रंथ की विषय-वस्तु का समायोजन ग्रंथकार ने बहुत सुंदर एवं व्यवस्थित ढंग से किया है। सामायिक नियुक्ति की गाथा संख्या : एक अनुचिन्तन प्रायः प्राचीन रचना के साथ अनधिकृत या प्रक्षिप्त अंश जुड़ने की समस्या जुड़ी रहती है। इस समस्या का समाधान जितना आवश्यक है, उतना ही कठिन भी है। प्रक्षिप्त अंश को जानने के लिए उस रचना की पांडुलिपि एवं उसके व्याख्या ग्रंथों का गंभीरता से पारायण करना पड़ता है। सामायिक नियुक्ति की उपलब्धि के चार स्रोत प्राप्त होते हैं-१. नियुक्ति की हस्तलिखित प्रतियां २. चूर्णि ३. भाष्य ४. तथा टीका-साहित्य। तीनों छेद सूत्रों के भाष्य नियुक्ति गाथाओं के साथ मिलकर एक ग्रंथ रूप हो गए हैं। आवश्यक नियुक्ति पर लिखे गए भाष्य का स्वतंत्र अस्तित्व मिलता है लेकिन उसमें भी नियुक्ति गाथाओं का सम्मिश्रण हो गया है। सामायिक नियुक्ति की जितनी भी हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध हुईं, उनमें भाष्य और नियुक्ति की गाथाएं तथा अन्य अनेक प्रक्षिप्त गाथाएं भी साथ में लिखी हुई मिलीं अत: उनके आधार पर गाथाओं का निर्णय संभव नहीं था। प्रतियों का लेखन प्राय: मुनि या यति लोग करते थे। वे व्याख्यान की सामग्री के लिए अथवा प्रसंगवश कुछ गाथाएं स्मृति हेतु हासिए में लिख देते थे। कालान्तर में वे मूल सूत्र के साथ जुड़ जाती थीं। सामायिक नियुक्ति में भी ऐसा अनेक स्थलों पर हुआ है। सामायिक नियुक्ति पर लिखे गए विशेषावश्यक भाष्य पर तीन टीकाएं मिलती हैं-१. स्वोपज्ञ, २. कोट्याचार्यकृत तथा ३. मलधारी हेमचन्द्रकृत। इन तीनों में भी भाष्य-संख्या एवं नियुक्ति-संख्या में पर्याप्त अंतर है। सामायिक नियुक्ति की गाथा-संख्या के निर्धारण में चूर्णि को भी पूर्णतया प्रमाण नहीं माना जा सकता क्योंकि उसमें भाष्य गाथाओं की भी व्याख्या है। दूसरी बात, चूर्णि में गाथाओं का केवल संकेत मात्र है। अनेक स्थलों पर तो चूर्णिकार ने 'सुगमा' 'नवरं चत्तारि गाहाओ भाणियव्वाओ' मात्र इतना ही उल्लेख किया है। कहींकहीं गाथा की व्याख्या है पर उसका संकेत नहीं है। अनेक स्थलों पर चूर्णि में पूरी गाथा मिलती है पर व्याख्या नहीं है। वहां संभवतः गाथा संपादक द्वारा जोड़ दी गयी हो ऐसा प्रतीत होता है। सामायिक नियुक्ति के बारे में हमारा मंतव्य है कि मूल रूप में इसमें बहुत कम गाथाएं थीं लेकिन बाद में आचार्यों ने प्रसंगवश अनेक गाथाओं की रचना कर उनको इसके साथ संयुक्त कर दिया अथवा अन्य गाथाओं का संग्रह कर दिया। साथ ही भाष्य की अनेक गाथाएं भी नियुक्ति गाथा के रूप में प्रसिद्ध हो गयीं। सामायिक र मुख्यतः तीन संस्कत नती हैं-१. हारिभद्रीया टीका १. प्रकाशित मलधारी हेमचन्द्र कृत टीका में नियुक्ति के क्रमांक अलग से दिए हुए नहीं हैं। त्यामलता-रार* POT P9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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