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________________ आवश्यक निर्युक्ति ६४९. नय के आठ प्रकार हैं १. आलोचनानय २. विनयनय ३. क्षेत्रनय ४. दिग्अभिग्रहनय ५. कालनय ६. नक्षत्रनय ७. गुणसंपदानय ८. अभिव्याहारनय' ६५०. गुरु विषयक करण ये हैं- उद्देशकरण, समुद्देशकरण, वाचनाकरण, अनुज्ञाकरण । शिष्य विषयक करण भी ये ही हैं - उद्दिश्यमानकरण, समुद्दिश्यमानकरण, वाच्यमानकरण तथा अनुज्ञायमानकरण। २६३ ६५१, ६५२. सामायिक की उपलिब्ध कैसे होती है ? सामायिकावरण के सर्वविघाती तथा देशविघाती दो प्रकार के स्पर्द्धक होते हैं । उदीर्ण सर्वविघाती स्पर्द्धकों का सर्वथा उद्घात होने पर तथा देशघाती स्पर्द्धकों उद्घात हो जाने पर अनन्त गुणी विशुद्धि से शुभ परिणाम वाले जीव को 'ककार' की उपलब्धि होती है अर्थात् प्रथम अक्षर का लाभ होता है। उसके पश्चात् अनन्तगुण विशोधि से विशुद्ध होता हुआ जीव शेष अक्षरों का भी क्रमशः लाभ प्राप्त कर लेता है। करण (करेमि ) द्वार के प्रसंग में यह भाव करण है । अब जो भंते शब्द कहा गया है, उसकी व्याख्या है। ६५३. गुरु भय + अन्त २- भय का अंत करने वाले होने के कारण 'भयान्त' होते हैं, यह भयान्त शब्द की रचना है। ‘भय' के छह निक्षेप हैं - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। सबका अनुक्रम से वर्णन कर लेने पर 'अंत' के भी छह प्रकार होते हैं - नामान्त, स्थापनान्त, द्रव्यान्त, क्षेत्रान्त, कालान्त तथा भावान्त । ६५४. इस तरह भयों के सभी प्रकारों का वर्णन कर लेने पर प्रस्तुत में सात भयों से विप्रमुक्त का अधिकार है तथा भवान्त या भदन्त का भी प्रसंग है । ६५५, ६५६. सामायिक के ये एकार्थक हैं-साम, सम, सम्यक्, इक । इन प्रत्येक के चार-चार निक्षेप होते हैं— नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । मधुरपरिणाम वाला द्रव्य - द्रव्य साम है। दूध और शर्करा की सम्यग् द्रव्य है । सूत में हार की युति - द्रव्य + इक' - द्रव्येक है । ये सारे द्रव्य के उदाहरण हैं । भूतार्थ के चिंतन में सम शब्द तुला का वाचक है। ६५७. आत्मौपम्य बुद्धि से परपीड़ा न करना 'भावसाम', राग-द्वेष में मध्यस्थ रहना 'भावसम', ज्ञानत्रिक की एकात्मकता 'भावसम्यग् ' तथा साम आदि को आत्मा में पिरोना 'भाव इक' है। ६५८. समता, सम्यक्त्व, प्रशस्त, शांति, सुविहित, सुख, अनिन्द्य, अदुगंछित, अगर्हित, अनवद्य - ये सब सामायिक के एकार्थक हैं। Jain Education International १. आवहाटी. १ पृ. ३१४; आचार्य शिष्ययोर्वचनप्रतिवचने अभिव्याहारः । आचार्य और शिष्य में वचन प्रतिवचन होना अभिव्याहार है। २. भंते शब्द के तीन संस्कृत रूप बनते हैं - १. भदन्त २. भवान्त ३. भयान्त । ३. भावभय सात प्रकार का है- १. इहलोकभय २. परलोकभय ३. आदानभय ४ अकस्मात् भय ५. अश्लोकभय ६. आजीविकाभय ७, मरणभय (आवहाटी. १ पृ. ३१५ ) । ४. इक शब्द देशी है। यह प्रदेश अर्थ का वाचक है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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