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आवश्यक नियुक्ति
६०७. जैसे कोई पुरुष सर्वकामगुणित - सभी अभिलाषाओं को पूरा करने वाला भोजन करके क्षुधा और पिपासा से मुक्त होकर अमृत से तृप्त व्यक्ति की भांति रहता है ( उससे भी अनन्तगुणा सुख सिद्धों का है)। ६०८. इसी प्रकार अतुल निर्वाण को प्राप्त सिद्ध सर्वकालतृप्त रहते हैं । वे शाश्वत और अव्याबाध सुख को प्राप्त करके सुखी रहते हैं ।
६०९. सिद्ध के ये पर्यायवाची शब्द हैं- सिद्ध, बुद्ध, पारगत, परम्परागत, उन्मुक्तकर्मकवच, अजर, अमर, असंग ।
६१०. समस्त दुःखों से रहित, जन्म-जरा-मरण के बंधन से विप्रमुक्त सिद्ध अव्याबाध और शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं।
६११. सिद्धों को भावनापूर्वक किया गया नमस्कार जीव को सहस्रभवों से मुक्त कर देता है। वह नमस्कार उसके बोधि-लाभ के लिए होता है।
६१२. भवक्षय करने वाले धन्य व्यक्तियों के हृदय को न छोड़ता हुआ यह ' णमो सिद्धाणं' - सिद्धनमस्कार उनके विस्रोतसिका का वारक होता है।
६१३. इस प्रकार सिद्धनमस्कार महान् अर्थ वाला वर्णित है । मृत्युकाल के समीप होने पर इसका स्मरण बार-बार और अनवरत किया जाता है ।
६१४. यह सिद्धनमस्कार समस्त पापों का नाश करने वाला तथा सभी मंगलों में दूसरा मंगल है।
६१५. आचार्य शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम आचार्य, स्थापना आचार्य, द्रव्य आचार्य तथा भाव आचार्य । द्रव्य आचार्य है - एकभविक आदि। लौकिक आचार्य हैं- शिल्पशास्त्र के ज्ञाता आदि ।
६१५/१. पांच प्रकार के आचार' का अनुपालन करने वाले, उनकी प्रभावना करने वाले तथा आचार को क्रियात्मकरूप से दिखाने वाले को आचार्य कहा जाता है ।
६१६. ज्ञान आदि के भेद से आचार पांच प्रकार का है। उनका आचरण करने तथा उनकी प्रभावना करने के कारण जो भाव - आचार्य हैं, वे भाव आचार में उपयुक्त होते हैं।
६१७. आचार्य को भावनापूर्वक किया गया नमस्कार जीव को सहस्रभवों से मुक्त कर देता है । वह नमस्कार उसके बोधिलाभ के लिए होता है।
६१८. भवक्षय करने वाले धन्य व्यक्तियों के हृदय को न छोड़ता हुआ यह ' णमो आयरियाणं' - आचार्यनमस्कार उनके विस्रोतसिका का वारक होता है।
६१९. इस प्रकार आचार्यनमस्कार महान् अर्थ वाला वर्णित है । मृत्युकाल के निकट होने पर इसका स्मरण बार-बार और अनवरत किया जाता है ।
१. १. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. चारित्राचार, ४. तपः आचार तथा ५ वीर्याचार ।
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