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________________ ३० आवश्यक निर्यु के दो भेद हैं- श्रुतकरण और नोश्रुतकरण । श्रुतसामायिक का समवतार मुख्यतः श्रुतकरण में होता है। शेष तीन सामायिकों - सम्यक्त्वसामायिक, देशविरतिसामायिक और सर्वविरतिसामायिक का समवतार नोश्रुतकरण में होता है। १२. अनुमत - नय की दृष्टि से कौन सी सामायिक मोक्ष मार्ग का कारण है, इसका विचार करना अनुमत कहलाता है । • ज्ञाननय को सम्यक्त्वसामायिक और श्रुतसामायिक दोनों अनुमत हैं। क्रियानय को देशविरतिसामायिक और सर्वविरतिसामायिक- ये दोनों अनुमत हैं । क्रियारूप होने के कारण ये मुक्ति के कारण हैं । सम्यक्त्व सामायिक और श्रुतसामायिक इनके उपकारी मात्र होने से गौण हैं। १३. किम् - सामायिक क्या है ? • १४. कतिविध - सामायिक के कितने प्रकार हैं ? सामायिक के तीन प्रकार हैं - १. सम्यक्त्वसामायिक २. श्रुतसामायिक और ३. चारित्रसामायिक । १५. कस्य - सामायिक किसके होता है ? • द्रव्यार्थिक नय से गुण- प्रतिपन्न जीव सामायिक है और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से जीव का वही गुण सामायिक है। देखें सामायिक का अधिकारी, भूमिका पृ. २५ । • १६. क्व - सामायिक कहां होता है ? • · १७. केषु - सामायिक किन द्रव्यों में होता है ? • नैगम नय के अनुसार सामायिक केवल मनोज्ञ द्रव्यों में ही संभव है क्योंकि वे मनोज्ञ परिणाम के कारण बनते हैं। शेष नयों के अनुसार सब द्रव्यों में सामायिक संभव है। १८. कथम् - सामायिक की प्राप्ति कैसे होती है ? • सम्यक्त्वसामायिक और श्रुतसामायिक की प्राप्ति तीनों लोकों-ऊर्ध्व, अधः और तिर्यग्लोक में होती है । देशविरतिसामायिक की प्राप्ति केवल तिर्यग्लोक में होती है । सर्वविरतिसामायिक की प्राप्ति तिर्यग्लोक के एक भाग - मनुष्य लोक में होती है।' विस्तार हेतु देखें सामायिक और क्षेत्र, भूमिका पृ. २६ । श्रुतसामायिक की प्राप्ति मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण तथा दर्शन मोह के क्षयोपशम से होती है । सम्यक्त्व सामायिक की प्राप्ति दर्शनसप्तक के क्षयोपशम, उपशम और क्षय से होती है । देशविरतिसामायिक की प्राप्ति अप्रत्याख्यानावरण के क्षय, क्षयोपशम और उपशम से होती है । सर्वविरतिसामायिक की प्राप्ति प्रत्याख्यानावरण के क्षय, क्षयोपशम और उपशम से होती है । १९. कियच्चिरम् - सामायिक की स्थिति कितने समय तक रहती है ? सम्यक्त्व सामायिक और श्रुतसामायिक की लब्धि की दृष्टि से उत्कृष्ट स्थिति छासठ सागरोपम से कुछ अधिक है ।" देशविरतिसामायिक और सर्वविरतिसामायिक की उत्कृष्ट स्थिति देशोन १. विभामहे ३३६१, ३३६२ । २. विभा ३५९२, महेटी पृ. ६७५ । ३. आवनि. ४९६ । ४. आवनि. ४९९ । Jain Education International ५. आवनि. ५१० । ६. विभा ३३८५, ३३८६ । ७. विभा ३४१७, महेटी पृ. ६४९ । ८. आवनि. ५४९, हाटी. १ पृ. २४१ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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