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आवश्यक नियुक्ति के साथ प्रव्रजित होकर श्रमण बन गया। ४१०. उन सबको प्रव्रजित सुनकर प्रभास जिनेश्वर देव के समीप आया। उसने सोचा-मैं जाऊं, वंदना करूं और वंदना कर भगवान् की पर्युपासना करूं। ४११,४१२. जन्म, जरा और मृत्यु से विप्रमुक्त, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जिनेश्वर देव ने प्रभास को नाम और गोत्र से संबोधित कर कहा- 'प्रभास! तुम्हारे मन में यह संशय है कि निर्वाण है अथवा नही? तुम वेदपदों के अर्थ नहीं जानते। सुनो, उनका अर्थ यह है।' ४१३. जरा और मरण से विप्रमुक्त जिनेश्वर देव द्वारा प्रभास का संशय मिट जाने पर वह अपने ३०० शिष्यों के साथ प्रव्रजित होकर श्रमण बन गया। ४१४. गणधरों का क्षेत्र, काल, जन्म, गोत्र, अगार-पर्याय, छद्मस्थ-पर्याय, केवलि-पर्याय, आयुष्य, आगम, परिनिर्वाण तथा तप-ये व्याख्येय द्वार हैं। ४१५. इन्द्रभूति अग्निभूति और वायुभूति-ये तीनों मगध जनपद के गोबरग्राम के निवासी थे। इनका गोत्र गौतम था। व्यक्त और सुधर्मा-ये दो कोल्लाग-सन्निवेश के थे। ४१६. मंडित और मौर्यपुत्र-ये दोनों भाई मौर्य सन्निवेश के थे। अचलभ्राता का जन्म-स्थान कौशल और अकंपित का मिथिला था। ४१७. तुंगिक सन्निवेश की वत्सभूमि में मेतार्य का जन्म हुआ। गणधर प्रभास राजगृह के थे। ४१८. गणधरों के क्रमश: नक्षत्र ये हैं-ज्येष्ठा, कृत्तिका, स्वाति, श्रवण, उत्तराफाल्गुनी, मघा, रोहिणी, उत्तराषाढा, मृगशिरा, अश्विनी और पुष्य। ४१९,४२०. प्रथम तीन गणधरों के पिता वसुभूति तथा शेष गणधरों के पिताओं के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-धनमित्र, धर्मिल (धम्मिल), धनदेव, मौर्य, देव, वसु, दत्त और बल। प्रथम तीन गणधरों की माता का नाम था पृथिवी। शेष गणधरों की माताओं के क्रमशः नाम ये हैं-वारुणी, भद्रिला, विजयदेवी, विजयदेवी, जयन्ती, नंदा, वरुणदेवी तथा अतिभद्रा। ४२१-४२४. गणधरों के गोत्र, गृहस्थकाल एवं छद्मस्थकाल इस प्रकार हैंगणधर
गृहस्थकाल छद्मस्थकाल १. इन्द्रभूति
गौतम २. अग्निभूति
४६ वर्ष १२ वर्ष ३. वायुभूति
गौतम व्यक्त
भारद्वाज ५० वर्ष सुधर्मा
अग्निवैश्यायन ५० वर्ष
४२ वर्ष मंडित
वाशिष्ठ
गोत्र
५० वर्ष
३० वर्ष
गौतम
४२ वर्ष
१० वर्ष १२ वर्ष
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५३ वर्ष
१४ वर्ष
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