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आवश्यक नियुक्ति
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३१४-३१६. सौधर्मकल्पवासी सामानिक देव संगम शक्र की बात सुनकर असहिष्णु होकर इन्द्र से बोला'आप राग से प्रतिबिद्ध होकर यह कह रहे हैं कि तीनों लोकों को अभिभूत करने वाले महावीर के मन को कोई भी देव विचलित नहीं कर सकता। आप सब देखें, आज ही मैं उनको विचलित कर दूंगा। उनको योग और तप से विचलित करना मेरे वश में है।' यह कहकर वह संगम देव इन्द्र की बात पर असहिष्णु होकर तत्काल भगवान् के पास आया और मिथ्यादृष्टि से प्रतिबद्ध होकर मारणान्तिक उपसर्ग उत्पन्न करने लगा।
३१७ - ३१९. संगम देव द्वारा प्रदत्त बीस उपसर्ग इस प्रकार हैं
१. धूलिवर्षा
२. पिपीलिकाओं की विकुर्वणा
३. मधुमक्खियां अथवा खटमल ४. तेलपायी ५. बिच्छु
६. नकुल ७. सर्प
८. मूषक ९. हाथी
१०. हथिनी
११. पिशाच
१२. विकराल व्याघ्र
१३. स्थविर - सिद्धार्थ
१४. स्थविरा - त्रिशला
१५. रसोइया - पैरों के बीच अग्नि जलाकर पकाना
१६. चाण्डाल
१७. प्रचंड वायु
१८. कलंकलिका वायु
३२०, ३२१. बीसवें अनुलोम उपसर्ग में संगम देव ने सामानिक देव की ऋद्धि दिखाई। वह विमानगत होकर बोला- 'महर्षे! वरदान ग्रहण करें। मैं स्वर्ग और मोक्ष की निष्पत्ति कर सकता हूं ।' भ्रष्ट मति वाले उस संगम देव ने भगवान् को अधिक कष्ट देने का चिंतन कर अवधिज्ञान का उपयोग लगाया। उसने देखा कि भगवान् तो षड्जीवनिकाय के प्रति हित- चिन्तन में लीन हैं।
१. देखें परि. ३ कथाएं ।
१९. कालचक्र
२०. प्राभातिक दृश्य (अनुलोम उपसर्ग)
३२२. भगवान् वहां से बालुका गांव में गए। संगम देव ने मार्ग में चोरों की विकुर्वणा की । उन्होंने भगवान् को पागल समझकर मारा-पीटा। भगवान् पारणे में भिक्षा के लिए गए। संगम ने भगवान् के रूप में स्त्रियों के प्रति काणच्छी-आंखों से इशारा किया। स्त्रियों ने भगवान् को पीटा। भगवान् सुभौम नगर में गए। वहां भी संगम देव ने स्त्रियों के प्रति अंजलिकर्म किया। वहां से भगवान् सुछत्रा नगरी में गए। वहां भी संगम देव नेविट का रूप बना कर अनेक कुचेष्टाएं कीं।
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३२३. संगम देव ने मलय गांव में भगवान् का पिशाच का रूप बनाया तथा हस्तिशीर्ष नगर में भव्य रूप की विकुर्वणा की । लोगों द्वारा अवमानना । भगवान् श्मशान में प्रतिमा में स्थित हो गए। इन्द्र ने आकर भगवान् की यात्रा और यापनीय की सुख-पृच्छा की।
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