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आवश्यक नियुक्ति ३०७. अनार्य देश में अनियतवास करके भगवान् सिद्धार्थपुर गए। कूर्मग्राम जाते समय मार्ग में तिल का स्तम्ब मिला। तिलस्तंब की निष्पत्ति के विषय में गोशालक ने पृच्छा की और भगवान् ने उत्तर दिया। उसको अन्यथा करने हेतु अनार्य गोशालक ने उस तिलस्तंब को उखाड़ दिया। वर्षा एवं काली गायों के खुरों से वह स्तंब भूमि में प्रतिष्ठित हो गया। ३०८. मगध देश के गोबरग्राम में गोशंखी नामक कौटुम्बिक था। बाल तपस्वी वैश्यायन 'पाणामा' प्रव्रज्या से प्रव्रजित होकर कूर्मग्राम में आतापना लेता था। जटा से जूएं गिरने पर वह उन्हें पुन: जटा में सुरक्षित रख देता। गोशालक द्वारा निन्दा करने पर वैश्यायन प्ररुष्ट हो गया। ३०९. भगवान् वैशाली में प्रतिमा में स्थित हो गए। बच्चों ने पिशाच समझ कर अवहेलना की। वहां के गणराजा शंख ने उनकी पूजा-अर्चना की। वाणिज्यग्राम जाते हुए भगवान् ने नौका से गंडिका नदी को पार किया। मूल्य न देने पर नाविक ने कष्ट दिए। शंखराजा के भागिनेय तथा नौ सेना के अधिपति चित्र ने भगवान् को मुक्त कराया। ३१०,३११. भगवान् वाणिज्यग्राम गए। वहां आनन्द नाम का श्रावक आतापना लेता था। उसे अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई। उसने कहा- 'भगवान् परीषहों को सहेंगे और उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होगा।' वहां से श्रावस्ती में विचित्र तपःकर्म किया। फिर सानुलष्टिक गांव में गए। वहां भगवान् ने लगातार भद्र, महाभद्र
और सर्वतोभद्र प्रतिमाएं की। इस प्रकार एक सौ अठाईस प्रहर की प्रतिमाएं संपन्न कर भगवान् आनंद गाथापति के घर गए। घर की दासी बहुलिका बासी अन्न फेंकने बाहर निकली। भगवान् ने हाथ पसारा। दासी ने दान दिया। पांच दिव्य प्रादुर्भूत हुए। ३१२. भगवान् दृढभूमि के बाहर पेढाल नाम के उद्यान में पोलास नामक चैत्य में ठहरे। वहां तेले की तपस्या में एकरात्रिकी महाप्रतिमा में स्थित हुए। (वे एक पुद्गल पर दृष्टि स्थापित कर ध्यान में लीन हो
गए।)
३१३. देवराज शक्र सुधर्मा सभा में परम हर्षित होकर बोला- 'तीनों लोकों में जिनेश्वर वीर के मन को चलित करने में कोई भी समर्थ नहीं है।'
१-४. देखें परि. ३ कथाएं। ५. भद्रप्रतिमा प्रत्येक दिशा में चार-चार प्रहर, महाभद्र प्रतिमा प्रत्येक दिशा में अहोरात्र तथा सर्वतोभद्र प्रतिमा ऐन्द्री,
आग्नेयी आदि दसों दिशाओं में एक-एक अहोरात्र की होती है। इन तीनों प्रतिमाओं की संपन्नता का कालमान है-सोलह अहोरात्र । भद्र प्रतिमा में दिन में पूर्व की ओर तथा रात में दक्षिण की ओर मुंह करके ध्यान किया जाता है। दूसरे दिवस दिन में पश्चिम तथा रात में उत्तर की ओर मुंह करके ध्यान किया जाता है । इस प्रकार बेले की तपस्या हो जाती है। महाभद्र प्रतिमा में चारों दिशाओं में एक दिन-रात का ध्यान किया जाता है। इसमें चार दिन की तपस्या हो जाती है। सर्वतोभद्र प्रतिमा में आग्नेयी आदि दसों दिशाओं में एक रात-दिन का ध्यान किया जाता है। भद्र,
महाभद्र और सर्वतोभद्र प्रतिमा करने से भगवान् के लगातार १६ दिन अर्थात् एक सौ अठाईस प्रहर की तपस्या हो गयी। ६. देखें परि. ३ कथाएं।
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