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आवश्यक नियुक्ति
जल जाए।' घर जल गया। भगवान् ने वहां से चंपा नगरी में वर्षावास किया। वे द्विमासक्षपण की तपस्या काल बिताने लगे।
२९१. भगवान् कालाय सन्निवेश के शून्यागार में प्रतिमा में स्थित हो गए। सिंह नामक ग्रामकूट - पुत्र विद्युन्मती दासी के साथ वहां आया। गोशालक ने दासी का स्पर्श कर लिया। गोशालक की पिटाई। वहां से पात्रालक शून्यागार में स्कंदक नामक ग्रामकूट- पुत्र दत्तिलिका दासी के साथ आया । भगवान् वहां प्रतिमा में स्थित। हसने के कारण गोशालक वहां भी पीटा गया।
२९२. कुमाराय सन्निवेश के चम्परमणीय उद्यान में पाश्र्वापत्यीय श्रमण मुनिचन्द्र कूपनक कुंभकार - शाला में स्थित थे। कूपनक कुंभकार ने मुनि को चोर समझकर मार डाला। चोराक सन्निवेश में भगवान् को गुप्तचर समझ कर कूप में लटका दिया। वहां सोमा और जयन्ती नामक दो परिव्राजिकाओं ने उनको मुक्त कराया । ३
२९३. भगवान् ने पृष्ठचंपा नगरी में चातुर्मासिक तपस्या का संकल्प किया। वहां से कृतांगला नगरी के देवकुल में प्रतिमा में स्थित हो गए। वहां दरिद्रस्थविर नामक पाषण्ड के साथ गोशालक की कुचेष्टा और तिरस्कार ।
२९४. श्रावस्ती नगरी में पितृदत्त गृहपति की पत्नी श्रीभद्रा मृत संतानों को पैदा करती थी। शिवदत्त नैमित्तिक ने उपाय बताया। द्वार में अग्नि । पायस में नख और केश। हरिद्राक गांव के हरिद्रक वृक्ष के नीचे भगवान् प्रतिमा में स्थित । पथिकों द्वारा अग्नि जलाना, जिससे भगवान् के पैर जल गए।"
२९५. भगवान् नंगला गांव में वासुदेव-गृह में प्रतिमा में स्थित हो गए। गोशालक आंखें बाहर निकाल कर बच्चों को डराने लगा। आवर्त्त नामक गांव में गोशालक मुंह को विकृत कर डराने लगा। उसे पिशाच समझ कर छोड़ दिया । बलदेव की प्रतिमा हल को बाहु में लेकर उठी। सभी भगवान् के चरणों में प्रणत २९६. चोराक सन्निवेश में भोज्य का आयोजन था । एक मंडप बनाया गया। गोशालक देश-काल की प्रतिलेखना करने इधर-उधर देख रहा था। लोगों ने उसे चोर समझ कर पीटा। उसने धर्माचार्य की दुहाई देकर मंडप को जला डाला। वहां से भगवान कलंबुका सन्निवेश में गए। वहां मेघ और कालहस्ती नामक दो भाइयों द्वारा अनेक उपसर्ग ।
गए।
२९७. भगवान् ने लाढ देश में घोर उपसर्ग सहे । पूर्णकलश नामक अनार्य गांव में दो चोर भगवान् को अपशकुन समझकर मारने दौड़े। इन्द्र ने दोनों को वज्र से मार डाला। वहां से भद्रिलनगरी में भगवान् ने चातुर्मासिक तप किया।
२९८. वर्षावास संपन्न कर भगवान् कदलीसमागम गांव में गए। गोशालक ने दही चावल खाए । भगवान् प्रतिमा में स्थित थे। वहां से जम्बूषंड नामक गांव में गोशालक द्वारा दूध-चावल का भोजन । गोशालक का
१७. देखें परि. ३ कथाएं ।
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