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आवश्यक नियुक्ति
२०५ २८१. तीसरी बात अवाच्य है, उसे भार्या कहेगी, मैं नहीं कहूंगा। भगवान् का वस्त्र दक्षिणवाचाला के मार्गगत सुवर्णबालुका नदी के पुलिन के कंटक में लग गया। वह वस्त्र भगवान् के पिता का सखा ब्राह्मण ले गया। २८२. उत्तरवाचाला के मध्य एक वनषंड में चंडकौशिक सर्प । दृष्टिविष से भगवान् दग्ध नहीं हुए। चिन्तन करते-करते उसे जातिस्मरण कि क्रोध के कारण ज्योतिष्क देव बना फिर वहां से सर्पयोनि में आया हूं। २८३. उत्तरवाचाला में नागसेन गृहपति ने भगवान् को खीर का भोजन दिया। पांच दिव्य प्रादुर्भूत हुए। श्वेतविका नगरी में प्रदेशी राजा। पांच नैयक राजा पांच रथों पर। २८४. सुरभिपुर में सिद्धयात्र नामक नाविक भगवान् को गंगा पार कराने को उद्यत। उलूक की वाणी, क्षेमिल नामक शकुन-ज्ञाता, सुदंष्ट्रावाला नागकुमार देव कुपित हुआ। उस समय कंबल-संबल देवों द्वारा जिनेश्वर की महिमा। २८५. मथुरा में जिनदास श्रावक। वह आभीर से लेन-देन करता। आभीर के घर विवाह का प्रसंग। उसने श्रावक को उपहार रूप में दो बैल दिए। एक दिन श्रावक के उपवास। बैलों ने भी उपवास किया। श्रावक का एक मित्र । शकट-यात्रा में बैलों का जाना । भक्तप्रत्याख्यान से उनका नागकुमार देव बनना। भगवान् के उपसर्ग के समय उनका आगमन और उपसर्ग से मोचन ।' २८६. नौका में आरूढ भगवान् को मिथ्यादृष्टि नागकुमार देव ने उपसर्ग दिए। क्षत-विक्षत भगवान को कंबल-संबल नामक देवों ने पार उतारा। २८७, २८८. स्थूणाक सन्निवेश के बाहर नदी तट पर पुष्य ने भगवान् के पदचिह्न देखे। इंद्र का आगमन, वस्तुस्थिति की अवगति । राजगृह में तंतुवायशाला में प्रथम मासक्षपण की तपस्या, मंखलि नामक मंख तथा उसकी भार्या सुभद्रा। सरवण नामक सन्निवेश में गोबहुल ब्राह्मण के यहां गोशाला का जन्म। विजय, आनंद
और सुनंद के घर क्रमशः भोजनविधि', खाद्यविधि और सर्वकामगुणित भोजन से मासक्षपण का पारणा।' २८९. कोल्लाक सन्निवेश में बहुल ब्राह्मण के यहां चतुर्थ मासक्षपण का खीर से पारणा। पांच दिव्यों को देखकर गोशाला दीक्षित। सुवर्णखलक के बाहर पायस-स्थाली का फूटना, गोशालक द्वारा नियतिवाद का ग्रहण। २९०. ब्राह्मणग्राम में नंद-उपनंद नामक दो भाई। भगवान् नंद के घर गए। बासी चावल ग्रहण किए। उपनंद के घर ठंडे चावल देने पर गोशालक ने कुपित होकर कहा- 'मेरे धर्माचार्य का तेज हो तो यह घर
१-५. देखें परि. ३ कथाएं। ६. भोजन विधि-भात, शाक आदि। ७. खाद्य विधि-मिठाई आदि।
८. सर्वकाम गुणित-समस्त इन्द्रियों को तृप्त करने वाला भोजन। ९, १०. देखें परि. ३ कथाएं।
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