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________________ २४ आवश्यक नियुक्ति जिनदासगणि महत्तर ने सामायिक आवश्यक को आदि मंगल के रूप में स्वीकार किया है। उत्तराध्ययन सूत्र में गौतम भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं कि सामायिक करने से जीव को क्या लाभ होता है ? इसके उत्तर में महावीर कहते हैं कि सामायिक से सावध योग अर्थात् पापकारी प्रवृत्ति से जीव की निवृत्ति होती है। भगवती में पार्खापत्यीय कालास्यवेसी अनगार के पूछने पर स्थविर साधुओं ने कहा कि आत्मा ही सामायिक है। आचार्य तुलसी के अनुसार मन, वाणी और क्रिया में संतुलन का अभ्यास ही सामायिक है। सामायिक के प्रकार सम्यक्त्व, श्रुत और चारित्र द्वारा समभाव में स्थिर रहा जा सकता है अत: सामायिक के तीन भेद हैं-१. सम्यक्त्वसामायिक २. श्रुतसामायिक ३. चारित्रसामायिक। चारित्र सामायिक के दो भेद हैं-अगार सामायिक और अनगार सामायिक। अगार सामायिक श्रावकों के तथा अनगार सामायिक साधुओं के होती है। अगार सामायिक अल्पकालिक एवं अनगार सामायिक यावज्जीवन के लिए होती है। श्रुत सामायिक के भी तीन भेद हैं-१. सूत्र सामायिक २. अर्थ सामायिक ३. तदुभय सामायिक।' सामायिक का निर्गम ( उद्भव) वैशाख शुक्ला एकादशी को पूर्वाह्न काल में महासेनवन उद्यान में भगवान् महावीर ने प्रथम बार सामायिक का निरूपण किया। कर्ता के बारे में चर्चा करते हुए जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण कहते हैं कि व्यवहार दृष्टि से सामायिक का प्रतिपादन तीर्थंकर और गणधरों ने किया पर निश्चय दृष्टि से सामायिक का अनुष्ठान करने वाला ही सामायिक का कर्ता है। प्रथम और अंतिम तीर्थंकर को छोड़कर शेष बावीस तीर्थंकर सामायिक संयम का उपदेश देते हैं।' सामायिक के निरुक्त नियुक्तिकार ने श्रुतसामायिक आदि तीनों सामायिकों की निरुक्तियों का उल्लेख किया है। आचार्य हरिभद्र ने निरुक्ति शब्द का अर्थ क्रिया, कारक, भेद और पर्यायों द्वारा शब्दार्थ-कथन को निरुक्ति कहा है। मलधारी हेमचन्द्र ने निश्चित उक्ति को निरुक्ति कहा है। यहां निरुक्ति शब्द से नियुक्तिकार का क्या अभिप्राय था, यह आज स्पष्ट नहीं है लेकिन इन शब्दों को आंशिक पर्यायवाची कहा जा सकता है। सम्यक्त्व सामायिक की सात नियुक्तियां सम्यक्त्व की विविध विशेषताओं की द्योतक हैं। नियुक्तिकार ने अक्षर, संज्ञी आदि श्रुत के चौदह भेदों को ही श्रुतसामायिक की निरुक्ति कहा है। इन्हें एकार्थक नहीं कहा जा सकता लेकिन यहां श्रुत के भेदों को ही उसके निरुक्त के रूप में स्वीकृत किया है। चारित्रसामायिक के छह और आठ निरुक्त क्रिया पर आधारित हैं। यहां चारित्रसामायिक प्राप्त करने के साधनों को ही उसकी निरुक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। सम्यक्त्वसामायिक के सात निरुक्त हैं-सम्यग्दृष्टि, अमोह, १. उ २९/९ , आवनि. ५०३। ६. विभामहे ३३८२, २. भ. १/४२६ आया णे अज्जो सामाइए, आवनि ४९४; आया केण कयं ति य ववहारओ जिणिंदेण गणहरेहिं च। खलु सामइयं..... तस्सामिणा उ निच्छयनयस्स तत्तो जओऽणन्नं॥ ३. आवनि. ४९९। ७. मूला ५३५। ४. आवनि. ५००। ८. आवहाटी.१ पृ. २४२; क्रियाकारक-भेद-पर्यायैः ५. आवनि. ४४७; शब्दार्थकथनं निरुक्तिः । वइसाहसुद्धएक्कारसीय, पुव्वण्हदेसकालम्मि। ९. विभामहेटी पृ. ३२०; निश्चितोक्तिर्निरुक्तिः । महसेणवणुज्जाणे, अणंतर-परंपर सेसं॥ १०. आवनि. ५६२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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