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श्रमणी
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सुमति
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आवश्यक नियुक्ति
१८९ १६६. ऋषभ, मल्लि, अरिष्टनेमि और भगवान् पार्श्व को तेले की तपस्या में, वासुपूज्य को उपवास की तपस्या में तथा शेष तीर्थंकरों को बेले की तपस्या में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। १६७-१७४. तीर्थंकरों की शिष्य-संपदा इस प्रकार हैतीर्थंकर
श्रमण ऋषभ ८४ हजार
३ लाख अजित १ लाख
३ लाख ३० हजार संभव २ लाख
३ लाख ३६ हजार अभिनंदन ३ लाख
६ लाख ३० हजार ३ लाख २० हजार ५ लाख ३० हजार पद्मप्रभ
३ लाख ३० हजार ४ लाख २० हजार सुपार्श्व ३ लाख
४ लाख ३० हजार चन्द्रप्रभ २ लाख
३ लाख ८० हजार सुविधि (पुष्पदंत) २ लाख
१ लाख २० हजार शीतल १ लाख
१ लाख ६ हजार श्रेयांस ८४ हजार
१ लाख ३ हजार वासुपूज्य ७२ हजार
१ लाख विमल ६८ हजार
१लाख८०० अनन्त ६६ हजार
६२ हजार धर्म ६४ हजार
६२ हजार ४०० शांति ६२ हजार
६१ हजार ६०० कुन्थु ६० हजार
६० हजार ६०० अर ५० हजार
६० हजार १९. मल्लि
४० हजार
५५ हजार २०. मुनिसुव्रत
३० हजार
५० हजार नमि २० हजार
४१ हजार नेमि १८ हजार
४० हजार पार्श्व १६ हजार
३८ हजार २४. महावीर
१४ हजार
३६ हजार १७४/१. सभी तीर्थंकरों के शिष्यों-श्रावक-श्राविकाओं का परिग्रह प्रथमानुयोग से जानना चाहिए। १७५. सभी तीर्थंकरों के प्रथम समवसरण में ही चातुर्वर्ण तीर्थ की उत्पत्ति हो गई। भगवान् महावीर के दूसरे समवसरण में तीर्थ की उत्पत्ति हुई।
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