________________
१८०
आवश्यक नियुक्ति मध्यवर्ती क्षेत्र में, बहुमध्यदेश (अर्थात् पर्यन्त में नहीं) में सात कुलकर उत्पन्न हुए। १३५. कुलकरों के पूर्वभव, जन्म, नाम, प्रमाण, संहनन, संस्थान, वर्ण, स्त्रियां (पत्नियां), आयु, भाग (किस वयोभाग में कुलकर बने), भवनपति निकाय में उपपात तथा उनके द्वारा प्रवर्तित नीति का कथन करना चाहिए। १३५/१,२. अपरविदेह में दो वणिक् मित्र थे। एक मायी और दूसरा ऋजु था। मरकर इसी भरत क्षेत्र में एक हाथी हुआ और दूसरा मनुष्य बना। मिथुनक को देखकर हाथी के मन में स्नेह, गज पर आरोहण, विमलवाहन नाम की निष्पत्ति, परिहानि, गृद्धि, कलह, पर्यालोचन, विज्ञापन तथा ‘हाकार' नीति का प्रवर्तन। १३५/३. पहले कुलकर विमलवाहन, दूसरे चक्षुष्मान्, तीसरे यशस्वी, चौथे अभिचन्द्र, पांचवें प्रसेनजित्, छठे मरुदेव तथा सातवें नाभि-ये सात कुलकर हुए। १३५/४. कुलकरों का प्रमाण (देह-परिमाण) इस प्रकार हैविमलवाहन-नौ सौ धनुष।
प्रसेनजित्-छह सौ धनुष। चक्षुष्मान्-आठ सौ धनुष।
मरुदेव-साढे पांच सौ धनुष। यशस्वी-सात सौ धनुष।
नाभि-पांच सौ पचीस धनुष । अभिचन्द्र-साढे छह सौ धनुष। १३५/५. सभी कुलकर वज्रऋषभनाराच संहनन तथा समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं। अब मैं प्रत्येक का जो वर्ण था, उसका निरूपण करूंगा। १३५/६. चक्षुष्मान्, यशस्वी तथा प्रसेनजित् कुलकर का वर्ण प्रियंगु के समान था। अभिचन्द्र चन्द्रमा की तरह गौर तथा शेष कुलकर स्वर्ण आभा वाले थे। १३५/७. कुलकर की पत्नियों के क्रमश: ये नाम हैं-चन्द्रयशा, चन्द्रकान्ता, सुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुःकान्ता, श्रीकान्ता तथा मरुदेवी। १३५/८. इन कुलकर की पत्नियों का संहनन, संस्थान तथा ऊंचाई-यह सब कुलकरों के समान होती हैं। सभी कुलकर पत्नियां एक वर्णवाली अर्थात् प्रियंगु वर्ण वाली होती हैं। १३५/९. प्रथम कुलकर विमलवाहन का आयुष्य पल्योपम का दसवां भाग था। शेष चक्षुष्मान् आदि कुलकरों का क्रमशः कम होते-होते असंख्येय पूर्व का और क्रमश: हीन होते हुए अन्तिम कुलकर नाभि का आयुष्य संख्येय पूर्व का रहा।
१. देखें परि. ३ कथाएं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org