SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवश्यक नियुक्ति १२५,१२६. उपोद्घात के २६ अंग हैं--- १. उद्देश २. निर्देश ३. निर्गम ४. क्षेत्र ५. काल ६. पुरुष ७. कारण ८. प्रत्यय ९. लक्षण १०. नय ११. समवतारणा १२. अनुमत १३. क्या ? १४. कितने प्रकार ? १५. किसका ? १६. कहां ? १७. किसमें ? १८. कैसे ? १९. कितने समय तक ? २०. कितने ? २१. सान्तर २२. अविरहित २३. भव २४. आकर्ष २५. स्पर्शना २६. निरुक्ति १२७. उद्देश के आठ निक्षेप हैं - १. नाम २. स्थापना ३. द्रव्य ४. क्षेत्र ५. काल ६. समास ( अंग, श्रुतस्कंध, अध्ययन) ७. उद्देशोद्देश ( अध्ययन का विषय ) ८. भाव । १२८. इसी प्रकार निर्देश के भी आठ प्रकार होते हैं। उद्देश सामान्य कथन और निर्देश विशेष कथन है। १७९ १२९. नैगम नय से दोनों प्रकार का निर्देश होता है-निर्देश्य और निर्देशक । संग्रह और व्यवहार नय निर्दिष्ट वस्तु के आधार पर निर्देश होता है। ऋजुसूत्र नय में निर्देशक के आधार पर निर्देश होता है। शब्दनय में निर्देश्य और निर्देशक दोनों समान हो जाते हैं । १३०. निर्गम के छह निक्षेप हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । १३१. वर्द्धमान के जीव ने अटवी में भटकते हुए मुनियों को मार्ग बताया, उनका प्रवचन सुना, इससे उसको सम्यक्त्व का पहला लाभ मिला । Jain Education International १३१/१. सुविहित मुनियों की अनुकंपा से सम्यक्त्व प्राप्त कर वह जीव दीप्तिमान् शरीर धारण कर वैमानिक देव बना । १३१ / २. देवलोक से च्युत होकर वह जीव इसी भारतवर्ष में इक्ष्वाकु कुल में ऋषभ का पौत्र मरीचि बना । १३२. भरत का पुत्र मरीचि इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न हुआ। कुलकर- परम्परा के अतिक्रान्त होने पर इक्ष्वाकु कुल की उत्पत्ति हुई। १३३,१३४. इस अवसर्पिणी के तीसरे आरे - सुषम - दुःषमा के अन्तिम भाग में पल्योपम का आठवां भाग अवशिष्ट रहने पर कुलकरों की उत्पत्ति हुई । अर्धभरत' के मध्यवर्ती तीसरे भाग में, गंगा और सिंधु नदी के १. देखें परि. ३ कथाएं । २. आवहाटी १ पृ. ७३; अर्धं भरतं विद्याधरालयवैताढ्यपर्वतादारतो गृह्यते - वैताढ्य पर्वत से पहले का क्षेत्र अर्धभरत. कहलाता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy