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________________ १५० आवश्यक नियुक्ति ६४७/३. जीवमजीवे भावे, अजीवकरणं तु तत्थ वण्णाई। जीवकरणं तु दुविहं, सुयकरणं नो य सुयकरणं ॥ ६४७/४. बद्धमबद्धं तु सुयं , बद्धं तु दुवालसंग निद्दिटुं। तव्विवरीयमबद्धं, निसीहमनिसीह बद्धं तु॥ ६४७/५. भूयापरिणयविगए', सद्दक्करणं तहेव न२ निसीहं। पच्छन्नं तु निसीहं, निसीहनामं जहऽज्झयणं ॥ ६४७/६. अग्गेणीयम्मि जहा, दीवायणु जत्थ एगु तत्थ सयं। जत्थ सयं तत्थेगो, हम्मइ वा भुंजए' वावि ॥ ६४७/७. एवं बद्धमबद्धं, आदेसाणं भवंति पंचसया। जह एगा मरुदेवी, अच्चंतत्थावरा' सिद्धा ॥ ६४७/८. नोसुयकरणं दुविहं, गुणकरणं तह य झुंजणाकरणं। गुणकरणं पुण दुविहं, तवकरणे संजमे य तहा ॥ ६४७/९. जुंजणकरणं तिविहं, मण-वय-काए य मणसि सच्चाई। सट्ठाणि तेसि भेदो, चउ चउहा सत्तहा चेव॥ ६४७/१०. भावसुयसद्दकरणे, अधिगारो एत्थ होइ कायव्वो । नोसुयकरणे गुणझुंजणं य जहसंभवं होइ॥ ६४८. कताकतं केण कतं, केसु य दव्वेसु कीरती वावि। काहे व कारओ नयओ, करणं कतिविधं 'च कहं॥ १. भूए परिणइ (स, म)। २. अ (स)। ३. अग्गेअणी (दी, म), "म्मि य (हा)। ४. भुंजई (म)। ५. अच्वंतं था (अ, म, दी)। ६. स्वो और महे में इसकी संवादी गाथा मिलती है नोसुतकरणं दुविहं, गुणकरणं जुंजणाभिधाणं च। गुणकरणं तव-संजमकरणं मूलुत्तरगुणा वा ।। (स्वो ४०८५, महे ३३५९) ७. अत्थ (अ)। ८. णायव्वो (स, दी, म)। ९. व (महे, स्वो)। १०. कधं वा (स्वो ७२५/४०८९), कहं व (महे), इस गाथा के बाद 'हस्तप्रतियों में उप्पन्नाणुप्पन्नं..........(हाटीभा १७५) तं केसु.....(हाटीभा १७६) काहु उदिष्टे......(हाटीभा १७७) ये तीन मूलभाष्य की गाथाएं हैं। ब और ला प्रति में 'गाथात्रयं भा ऽव्या' का उल्लेख है। मुद्रित हा, म, दी में भी ये मूलभाष्य के क्रम में हैं। महेटी में 'उप्पण्णा.....इत्यादि नियुक्तिगाथानामग्रहणे कारणं पूर्वोक्तमेव द्रष्टव्यम्' का उल्लेख है। इस उद्धरण से लगता है कि किसी आचार्य ने इन्हें निर्यक्ति-गाथा के अन्तर्गत भी माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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