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________________ १२८ आवश्यक नियुक्ति ५५६. ५५७. ५५८. ५५९. ५६०. सम्मत्तदेसविरता', पलितस्स असंखभागमेत्ताओ। 'अट्ठभवा उ'२ चरित्ते, अणंतकालं च सुतसमए॥ तिण्ह सहस्सपुहत्तं, सयप्पुहत्तं च होति विरतीए। एगभवे आगरिसा, एवतिया होंति णातव्वा ॥ 'तिण्ह सहस्समसंखा', सहसपुहत्तं च होति विरतीए। णाणभवे आगरिसा, ‘एवइया होंति णातव्वा'६ ॥ सम्मत्तचरणसहिता, सव्वं लोगं फुसे निरवसेसं। सत्त य चोद्दसभागे', पंच यः सुतदेसविरतीए । सव्वजीवेहिं सुतं, सम्मचरित्ताइ सव्वसिद्धेहिं । भागेहि असंखेज्जेहि, फासिता देसविरतीओ ॥ सम्मद्दिट्ठि अमोहो, सोधी सब्भाव दंसणं बोही। अविवज्जओ ‘सुदिट्ठि त्ति० एवमाई निरुत्ताई ॥ अक्खर सण्णी सम्मं, सादीयं२ खलु सपज्जवसितं च । गमियं अंगपविटुं, सत्त वि एते सपडिवक्खा" ॥ विरयाविरई संवुडमसंवुडे बालपंडिए चेव। देसेक्कदेसविरती, अणुधम्मोऽगारधम्मो" यः ॥ सामाइयं समइयं", सम्मावाओ समास संखेवो। अणवजं च परिण्णा, ‘पच्चक्खाणे य१८ ते अट्री ॥ ५६१. ५६२. ५६३. ५६४. १. "विरई (स, हा, दी)। २. भवाणि (स्वो ६३४/३२९२)। ३. तिण्डं (महे)। ४. "पुहुत्तं (अ, स), "पुधत्तं (स्वो ६३५/३२९३) सर्वत्र । ५. दोण्ह पुधत्तमसंखा (स्वो), दोण्ह पुहत्तम (महे), दुण्ह सहस्स' (बपा), दोण्ह सहस्स (मटीपा)। ६. सुए अणंता उ नायव्वा (महे), सुते अणंता तु णातव्वा (स्वो ६३६/३२९४)। ७. चउदस (म, ब), 'भागा (स्वो ६३७/३२९५)। ८.x (स)। ९. विरई (ब), स्वो ६३८/३२९६ । १०. सुदिट्टी (महे)। ११. स्वो ६३९/३२९७। १२. साइयं (म), सादियं (हा, दी)। १३. x (ब)। १४. स्वो ६४०/३२९८॥ १५. धम्मो अगार' (हा, दी, म, स, रा)। १६. स्वो ६४१/३२९९, इस गाथा के स्थान पर मुद्रित चूर्णि में 'सुतसा' इतना संकेत मिलता है। वह किस गाथा का संकेत है, यह आज उपलब्ध नहीं है क्योंकि चूर्णि में इसकी व्याख्या नहीं है। १७. समतियं (स्वो)। १८. क्खाणं च (महे)। १९. स्वो ६४२/३३००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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