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१६३ / १०. ' मग्गसिर सुद्धिक्कारसीए", मल्लिस्स अस्सिणीजोगे T फग्गुणबहुले बारसि सवणेणं सुव्वयजिणस्स ॥
१६३ / ११. मगसिर सुद्वेक्कारसि, अस्सिणिजोगेण नमिजिणिंदस्स । मिजिदिस्स चित्ताहिं ॥
आसोयऽमावसाए,
१६३ / १२. चित्ते
१६४.
१६५.
१६६.
चित्तस्स सुद्धतइया, कत्तियजोगेण नाण कत्तियसुद्धे बारसि', अरस्स नाणं तु
१६७.
१६८.
१६९.
बहुलचउत्थी,
वइसाहसुद्धदसमी,
उसभस्स पुरिमताले,
सेसाण
केवलाई,
तेवीसाए
वीरस्स पच्छिमण्हे,
कुंथुस्स । रेवइहिं ॥
विसाहजोगेण पासनामस्स । हत्थुत्तरजोगि
वीरस्स ॥
वीरस्सुजुवालिया
ज
नाणं, उप्पण्णं
१. कित्तिय (अ, हा, दी ) ।
२. बारस्स (अ ) ।
३. इहात्र नाम्नि बहुवचनं प्राकृतत्वात् (दी) ।
४. मगसिरसुद्धएक्का' (म, ब), मग्गसिरसुद्धइक्का' (अ, दी ) । ५. स्वो २२० / १६५८, १६४ और १६५ इन दोनों गाथाओं में हा, म, दी में क्रमव्यत्यय है। पहले १६५ की तथा बाद में १६४ की गाथा है । हस्तप्रतियों में भी यही क्रम मिलता है । किन्तु विषय की क्रमबद्धता की दृष्टि से भाष्य का क्रम अधिक संगत लगता है। हमने उसी क्रम को स्वीकृत किया है। चूर्णि में केवल १६४ वीं गाथा की कुछ भेद के साथ संक्षिप्त व्याख्या मिलती है।
नदीतीरे ।
पव्वता ॥
जिणवराण पुव्वण्हे । पमाणपत्ताएँ चरमा ॥
अट्टमभत्तं तम्मी, पासोसभ-मल्लि - रिट्ठनेमीणं । वसुपुज्जस्स चउत्थेण छत्ते सेसाणं ॥
चुलसीतिं च सहस्सा, एगं च दुवे य तिण्णि लक्खाई। तिणि य वीसहियाई, तीसहियाइं च तिण्णेव ॥ तिण्णि य अड्डाइज्जा, दुवे य एगं च सतसहस्साइं । चुलसीतिं च सहस्सा, बिसत्तरिं अट्ठसट्ठि च ॥ छावट्ठि चउसट्ठि", बावट्ठि १२ सट्ठिमेव पण्णासं । चत्ता तीसा वीसा, अट्ठारस सोलससहस्सा'३॥
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आवश्यक निर्युक्ति
६. स्वो २२१ / १६५९ ।
७.
तम्मिय ( स रा ) ।
८.
स्वो २२२ / १६६०, गा. १६६ - १७४ / १ तक की दस गाथाओं का चूर्णि में कोई संकेत या प्रतीक नहीं मिलता। मात्र ऋषभ, पार्श्व एवं अरिष्टनेमी के साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविकाओं की संख्या का उल्लेख है ।
९. स्वो २२३ / १६६१ ।
१०. स्वो २२४ / १६६२ ।
११. चोवट्ठि (म, रा), चउवट्ठि (ला) ।
१२. बासट्ठि (म) ।
१३. स्वो २२५ / १६६३ ।
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