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आवश्यक नियुक्ति
१६२. 'तिग दुग एक्कग सोलस", वासा तिण्णि य तहेवऽहोरत्तं ।
मासेक्कारस नवगं, चउपण्णदिणाइ चुलसीई ॥ १६३. तध बारसवरिसाई, जिणाण छउमत्थकालपरिमाणं।
उग्गं च तवोकम्मं, विसेसतो वद्धमाणस्स ॥ १६३/१. फग्गुणबहुलेक्कारसि, उत्तरसाढाहि नाणमुसभस्स।
पोसेक्कारसि सुद्धे, रोहिणिजोगेण अजियस्स' ॥ १६३/२. कत्तियबहुले पंचमि, मिगसिरजोगेण संभवजिणस्स।
पोसे सुद्धचउद्दसि', 'अभीइ'' अभिणंदणजिणस्स'११ ॥ १६३/३. चित्ते सुद्धक्कारसि, महाहि सुमइस्स नाणमुप्पन्न ।
चेत्तस्स पुण्णिमाए, पउमाभजिणस्स चित्ताहिं ।। १६३/४. फग्गुणबहुले छट्ठी, विसाहजोगे सुपासनामस्स।
फग्गुणबहुले सत्तमि, अणुराह ससिप्पभजिणस्स ॥ १६३/५. कत्तियसुद्धे१२ ततिया, मूले सुविहिस्स पुष्पदंतस्स।
पोसे बहुलचउद्दसि, पुव्वासाढाहि सीयलजिणस्स ॥ १६३/६. पण्णरसि माहबहुले, सिज्जंसजिणस्स सवणजोगेणं ।
सयभिसय'३ वासुपुज्जे, बीयाए माहसुद्धस्स ॥ १६३/७. पोसस्स सुद्धछट्ठी, उत्तरभद्दवय विमलनामस्स।
वइसाहबहुलचउदसि, रेवइजोगेण ऽणंतस्स ॥ १६३/८. पोसस्स पुण्णिमाए, नाणं धम्मस्स पुस्सजोगेणं।
पोसस्स सुद्धनवमी, भरणीजोगेण संतिस्स॥
१. ति दु इक्क सोलसगं (रा), "मिक्कग सोलस (अ, ब, हा, दी)। २. "दिणा य (अ, ला, रा), "दिणाई (म)। ३. 'सीई (ब, म), स्वो. २१८/१६५६ । ४. "वासाइं (स, हा, दी, ला)। ५. स्वो. २१९/१६५७। ६. जोगेसु (म, ब)। ७. १६३/१-१२-ये १२ गाथाएं टीकाओं में निगा के क्रम में व्याख्यात
हैं किन्तु दोनों भाष्य तथा चूर्णि में इन गाथाओं का कोई उल्लेख नहीं है। पंडित मालवणियाजी द्वारा संपादित स्वो में ये गाथाएं टिप्पण में दी हुई हैं। इन गाथाओं में १४४ वीं द्वारगाथा में वर्णित
उप्पया नाण (ज्ञानोत्पत्ति) द्वार की व्याख्या है। इस द्वार की व्याख्या नियुक्तिकार ने १६४, १६५ इन दो गाथाओं में की है
अतः ये प्रक्षिप्त एवं व्याख्यात्मक सी लगती हैं। ८. मग (स, रा)। ९. बहुल चउदसी (दीपा)। १०. अभिई (स)। ११. अदिती अभिणंदणस्स पाठः स च संगतः (दीपा)। १२. कित्तिय (म, स)। १३. सयभिसिय (अ)।
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