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आवश्यक नियुक्ति
१३१/१. लद्भूण य सम्मत्तं, अणुकंपाए उ सो सुविहिताणं।
भासुरवरबोंदिधरो, देवो वेमाणिओ जातो' । १३१/२. चइऊण देवलोगा, इह चेव य भारहम्मि वासम्मि।
इक्खागकुले जातो, उसभसुयसुतो मरीइ' त्ति॥ १३२. इक्खागकुले जातो, इक्खागकुलस्स होति उप्पत्ती।
कुलगरवंसेऽतीते, भरहस्स सुतो मरीइ ति॥ ओसप्पिणी इमीसे, ततियाएँ समाय पच्छिमे भागे।
पलितोवमट्ठभागे, सेसम्मि उ'५ कुलगरुप्पत्ती ।। १३४. अद्धभरहस्स मज्झिल्लतिभागे- गंग-सिंधुमज्झम्मि।
एत्थ बहुमज्झदेसे, उप्पन्ना कुलगरा सत्त ॥ १३५. पुव्वभव ‘जम्म-नामं, पमाण१०-संघयणमेव संठाणं।
वण्णित्थियाउ भागा, भवणोवाओ य णीती य१॥
१३३.
१. १३१/१, २ कोष्ठकवर्ती दोनों गाथाएं हा, म, दी इन तीनों टीकाओं में नियुक्तिगाथा के क्रम में व्याख्यात हैं। मलधारी हेमचन्द्र द्वारा व्याख्यात
विभा में ये गाथाएं नियुक्ति रूप में निर्दिष्ट नहीं हैं तथा स्वोपज्ञवृत्ति वाले भाष्य में भी ये निगा के रूप में स्वीकृत नहीं हैं। किन्तु वहां नीचे टिप्पण में ये दोनों गाथाएं दी हुई हैं। कोट्याचार्य कृत टीका वाले विभा में ये भाष्यगाथा के क्रम में व्याख्यात हैं। चूर्णि में इन गाथाओं का गाथा रूप में कोई प्रतीक नहीं दिया है किन्तु कथा के रूप में इनका भावार्थ गद्य में प्राप्त है। ये दोनों गाथाएं प्रक्षिप्त-सी प्रतीत होती हैं। यदि इन्हें निगा के क्रम में न भी रखें तो भी चालू विषयवस्तु के क्रम में कोई व्यवधान नहीं आता है। संभव है ये गाथाएं भाष्य की थीं किन्तु कालान्तर में ये निगा के क्रम में जुड़ गईं इसीलिए लखूण (१३१/१) गाथा की व्याख्या में हरिभद्र एवं मलयगिरि की टीका में इति नियुक्तिगाथार्थः का उल्लेख
मिलता है। २. मिरिइ (ला, स)। ३. मिरिइ (स)। ४. स्वो १४२/१५५०। ५. "म्मि य (म, ब), "म्मी (अ)। ६. स्वो १४३/१५५१ । ७. भरह (म, अ, हा, दी)। ८. मज्झिल्लु (हा, दी, स)। ९. स्वो १४४/१५५२, इस गाथा के बाद प्रायः सभी हस्तप्रतियों में निम्न गाथा मिलती है। व्याख्या ग्रंथों में यह गाथा अनुल्लिखित एवं अव्याख्यात है। ला, अ और ब प्रति में ऽन्या, अव्या (अन्या, अव्याख्यात) का उल्लेख है। यह गाथा व्याख्यात्मक एवं प्रक्षिप्त सी लगती है
पुव्वभव कुलगराणं, उसभजिणिंदस्स भरहरन्नो उ। इक्खागकुलुप्पत्ती, नेयव्वा
आणुपुव्वीए॥ १०. "नामप्प (अ, ला)। ११. स्वो १४५/१५५३।
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