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________________ प्रकाशकीय भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक तपस्या से लब्ध कैवल्य, ऋषित्व, मुनित्व, बुद्धत्व को प्राप्त महात्माओं की अतीन्द्रिय प्रज्ञा से निःसृत ज्ञान-मीमांसा, तत्त्व-मीमांसा व आचार-मीमांसा के आधार पर अपने उद्भव काल से आज तक अक्षुण्ण बनी हुई है। उन ऋषि मुनियों की वाणी को संस्कृत, पालि, प्राकृत वाङ्मय में लिपिबद्ध किया गया। पालि व प्राकृत वाङ्मय में बौद्ध एवं जैन परम्परा का साहित्य मिलता है तथा संस्कृत में वैदिक परम्परा का। वैदिक वाङ्मय में निरुक्त का जो स्थान है, आगमों में वही स्थान नियुक्ति का है। आगमों के गूढ़ अर्थ को परवर्ती आचार्यों ने कालक्रम के आधार को ध्यान में रखते हुए व्यक्त करने का प्रयत्न किया। उन्होंने क्रमश: नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, अवचूर्णि आदि व्याख्या ग्रंथों का निर्माण किया। आगम ग्रंथों की भाषा अर्द्धमागधी प्राकृत है और नियुक्तियों की भाषा भी प्राकृत ही है किन्तु इनकी भाषा में महाराष्ट्री प्राकृत का प्रभाव भी दिखलाई पड़ता है। मुख्यत: दस आगम-ग्रंथों पर नियुक्तियां लिखी गई हैं-१. आवश्यक, २. दशवैकालिक, ३. उत्तराध्ययन, ४. आचारांग, ५. सूत्रकृतांग, ६. दशाश्रुतस्कंध, ७. बृहत्कल्प, ८. व्यवहार, ९. सूर्यप्रज्ञप्ति, १०. ऋषिभाषित। नियुक्ति के रचनाकार के रूप में भद्रबाहु स्वामी का नाम उल्लिखित है किन्तु इस बात का समाधान अभी तक भी गवेषणा का विषय बना हुआ है कि नियुक्ति के रचनाकार प्रथम भद्रबाहु स्वामी हैं या द्वितीय। ___ दस नियुक्तियों में प्रथम है आवश्यक नियुक्ति । इसके मुख्य रूप से छह अध्ययन हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । इसलिए आवश्यक को षडावश्यक भी कहते हैं। आवश्यक आत्म-शुद्धीकरण के अनिवार्य अंग हैं इसलिए इनका विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अणुव्रती और महाव्रती दोनों के द्वारा अवश्य आचरणीय हैं इसलिए इनका नाम आवश्यक पड़ा। आवश्यक सूत्र पर लिखी प्रथम व्याख्या आवश्यक नियुक्ति है। वस्तुतः इस ग्रंथ का सम्पादन एक जटिल कार्य था। कारण यह है कि एक ही गाथा को किसी व्याख्याकार ने नियुक्ति गाथा के रूप में अंगीकार किया है तो किसी ने भाष्य गाथा के रूप में। किसी व्याख्याकार ने प्रक्षिप्त या अन्यकर्तृकी माना है तो अन्य व्याख्याकार ने गाथा का संकेत ही नहीं किया। समस्त विसंगतियों को दृष्टिगत रखते हुए ग्रंथ के सम्पादन में केवल शब्दों के पाठान्तर पर ही ध्यान नहीं दिया गया अपितु गाथाओं के पूर्वापर पर भी ध्यान दिया गया है। गाथाओं पर समीक्षात्मक पादटिप्पणी भी की गयी है अतः यह कार्य एक ऐतिहासिक अनुशीलन के रूप में प्रस्तुत हुआ है। ___ ग्रंथ के पांच परिशिष्ट हैं। प्रथम परिशिष्ट में गाथाओं का समीकरण प्रस्तुत किया गया है। संपादित एवं व्याख्या ग्रंथों की नियुक्ति गाथाओं में शताधिक गाथाओं का अंतर है। उक्त परिशिष्ट में सभी व्याख्या ग्रंथों के क्रमांक दे दिए हैं। दूसरा परिशिष्ट गाथाओं के पदानुक्रम से संबंधित है। तीसरे परिशिष्ट में आवश्यक नियुक्ति में निर्दिष्ट कथाओं का व्याख्या ग्रंथों के आधार पर अनुवाद किया गया है। चौथे परिशिष्ट में अन्य ग्रंथों के तुलनात्मक संदर्भ प्रस्तुत किए हैं तथा पांचवां परिशिष्ट प्रयुक्त ग्रंथ सूची का निर्देश करने वाला है। आगम अनुसंधान के प्रति सतत समर्पित समणी श्री कुसुमप्रज्ञा जैन विद्या, आगम-साहित्य एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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