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________________ क्रियाकोष प्रथम शिक्षाव्रत - सामायिकका कथन चौपाई सब जीवनिमें समता भाव, संयममें शुभ भावन चाव | आरति रुद्र ध्यान बिहु त्याग, सामायिक व्रत जुत अनुराग ॥ ४२२|| प्राणी सकल थकी मुझ क्षांति, वे ऊक्षम मुझ परि करि सांति । मेरो बैर नहीं उन परी, वे मुझतें कछु द्वेष न करी ॥४२३॥ इत्यादिक वच करिवि उचार, जो नर सामायिकको धार । परजंकासन ठाढो तथा, सकति प्रमाण थापि यथा ॥ ४२४|| पूर्वाह्निक मध्याह्निक चाल, अपराह्निक ए तीनों काल । मरयादा जेती उच्चरै, तेती वार पाठ सो करै ||४२५ || दुहुं आसनके दोष जु जिते, सामायिक जुत तजिहै त जो विशेष सुणिवाको चाव, ग्रंथ श्रावकाचार लखाव ॥ ४२६॥ हूं एकाकी अवर न कोई, सुद्ध बुद्ध अविचलमय जोई । करमा तैं बैढ्यो तर जाणि, मैं न्यारों तिहुं काल बखाणि ॥ ४२७॥ इस संसारै मुझ को नाहीं, मैं न किसीको इह जगमांही । बंध्यो अनादि करमतैं सही, निहचै बंधन मेरे नहीं ||४२८|| आगे शिक्षाव्रतोंका कथन करते हैं जिसमें प्रथम सामायिक शिक्षाव्रतका वर्णन करते हैं । ६७ सब जीवोंमें समता भाव रखना, संयम धारण करनेकी मनमें शुभभावना और उत्साह होना, तथा आर्त और रौद्र ध्यानका त्याग कर प्रीतिपूर्वक सामायिक करना यह सामायिक शिक्षाव्रत है । " समस्त प्राणियों पर मेरा क्षमाभाव है और वे भी मुझ पर शान्तभाव धारण करें। मेरा उन पर वैर नहीं है और वे भी मुझ पर वैर न करें" इत्यादि वचनोंका उच्चारण कर जो मनुष्य सामायिक करनेका नियम लेते हैं वे पर्यङ्कासन या खड्गासनका अपनी शक्ति प्रमाण नियम लेते हैं । पूर्वाह्न, मध्याह्न और अपराह्न ये तीन सामायिकके काल हैं । इन कालोंमें सामायिककी जितनी मर्यादा की है उतने समय तक सामायिक पाठका उच्चारण या मंत्राराधना करनी चाहिये। उपर्युक्त दोनों आसनोंके जो दोष चरणानुयोगमें कहे गये हैं उनका त्याग करना चाहिये। यदि इन दोषोंका विशेष वर्णन सुननेकी उत्कंठा है तो श्रावकाचार ग्रंथोंको देखना चाहिये ॥४२२-४२६॥ Jain Education International सामायिकमें बैठा मनुष्य ऐसा विचार करे कि मैं शुद्ध, बुद्ध, अविचल स्वभाववाला अकेला हूँ, दूसरा कोई मेरा नहीं है । यद्यपि मैं कर्मोंसे वेष्टित हूँ, सहित हूँ, तथापि तीनों काल उनसे पृथक् हूँ। इस संसारमें मेरा कोई नहीं है और मैं भी किसीका नहीं हूँ । यद्यपि मैं अनादि काल से १ भावसों स For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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