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________________ क्रियाकोष धणहि कमान तीर तरवार, जमघर छुरी कुहाड्या टार । सिल लोढो दांतण धोवणो, बाण जेवडा बेडी गणो ॥ ३९२ ॥ रथ भाडा वांहण अधिकार, अगनि ऊपलादिक निरधार । इत्यादिक कारण जे पाप, मांगे दिये बढ़ें संताप ॥ ३९३॥ यातें व्रतधारी जे जीव, मांग्या कबहुं न देय सदीव । द्वेष भाव कर वैर लखाय, वध बन्धण मारण चित थाय || ३९४|| परतिय देखि रूप अधिकार, ऐसो चितवन अति दुखकार । खोटे शास्त्र वखांणै जदा, सुणत दोष रागी है तदा ॥ ३९५॥ हिंसा अरु आरंभ बढाय, मिथ्याभाव उपरि चित थाय । जामैं एते कहै वखाणि, सो कुशास्त्र अघकारण जाणि ॥ ३९६॥ विनही कारण गमन कराय, जलक्रीडा औरनि ले जाय । बालै अनि काम विनु सोय, छेदै तरु अति उद्धत होय || ३९७॥ मेला देखनि चलिये यार, असवारी यह खडी तयार । गोटि करै निज खरचै दाम, ए सब जांणि पापके काम ||३९८|| कंडा) आदिक जो पापके कारण हैं, माँगे जाने पर उनका देना संतापकारक है इसलिये व्रती जीवको माँगने पर नहीं देना चाहिये । विशेष - यदि कोई परदेशी सहधर्मी भाई रसोई बनानेके लिये अग्नि या तवा कड़ाही आदि उपकरण माँगता है और उसका उपयोग उचित मालूम होता है तो उनका देना निषिद्ध नहीं है । यह सब हिंसादान नामका दूसरा अनर्थदण्ड है । व्रती मनुष्यको इसका त्याग करना चाहिये । ६३ द्वेषभावसे वैर कर किसीके वध बन्धन या मृत्युका मनमें विचार करना तथा रागवश परस्त्रीको देख उसकी सुन्दरताका चिन्तवन करना अपध्यान नामक अनर्थदण्ड है । यह अत्यन्त दुःखको करनेवाला है । कोई खोटे शास्त्रोंका व्याख्यान कर रहा हो उसे रागी होकर सुनना दुःश्रुति नामका अनर्थदण्ड है। जिनमें हिंसा, आरंभ बढ़ाने तथा मिथ्याभाव आदिका व्याख्यान हो वे पापके करनेवाले कुशास्त्र हैं ।। ३९१-३९६।। बिना कारण गमन करे, स्वयं जलक्रीड़ा करे तथा दूसरोंको ले जावे, बिना प्रयोजन अ जलावे, उद्धत होकर वृक्षोंका छेदन करे, दूसरोंसे कहे कि चलो मित्र ! मेला देखने चले, सवारी तैयार खड़ी है और अपने दाम खर्च कर गोट (पार्टी) करे, ये सब पापके काम हैं ॥३९७३९८ || बहुत जनोंका मन बहलानेके लिये कहें- चलो होला बालें खावें, बाजराके बिरा, जुवार, १ देत न० २ असवारी जु खडी दरवार स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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