________________
६२
श्री कवि किशनसिंह विरचित अनर्थदण्ड नामक तृतीय गुणव्रत कथन
चौपाई अनरथदंड पंच परकार, प्रथम पाप उपदेश असार । हिंसादान दूसरो जाण, तीजो खोटो ध्यान वखाण ॥३८४॥ तुरिय कुशास्त्र कहै मन लाय, पंचम प्रमादचर्या थाय । निज घरि कारिज विनु ते और, तिनके पाप तणी जो ठौर ॥३८५॥ पसू वणिज करवावै जाय, अरु तिह बीच दलाली खाय । हिंसाको आरंभ जु होई, ताकै उपदेसै जो कोय ॥३८६॥ मीठो लूण तेल घृत नाज, मादिक वस्तु मोम विनु काज ।
धोलिधाहम्या हरडै लाख, आल कसूंभाको अभिलाख ॥३८७॥ २नील हींग आफू मोहरो, भांग तमाखू सावण परो । तिलदाणा सिण लोह असार, इन उपदेश देहि अविचार ॥३८८॥ कुवा तलाव हवेली वाय, वाडी बाग कराय उपाय । कपडा वेगि धुवावैहु मीत, निज गृह कारिज राखहु चींत ॥३८९॥ परधन हरण तणी जे वात, सिखवावे बहुतेरी घात । इतने पाप तणे उपदेश, कियें होय दुरगति परवेश ॥३९०॥ चाकी ३ऊखल मूसल जिते, कुशी कुदाल फाहुडी तिते । तवो कडाही अरु दातलो, ए मांग्या देवो नहि भलो ॥३९१॥
उपदेश देना, जैसे पशुओंका व्यापार करवाना और उसमें दलाली खाना, हिंसाकारक जो आरंभ व्यापार आदि हैं उनका उपदेश देना, मीठा, नमक, तेल, घी, अनाज, नशीली वस्तुएँ, मोम...हरडे, लाख, आल और कुसुंभके रंग, नील, हींग, अफीम, मोहरा, भांग, तमाकु, साबुन, तिलदाना, सन
और लोह आदिके व्यापारका विचाररहित होकर उपदेश देना, कुआ, तालाब, मकान, बाग-बगीचा बनवानेका उपाय बतलाना, शीघ्र कपड़ा धुलवानेकी बात कहना तथा दूसरेके धनहरण संबंधी बहुत उपाय सिखलाना, इन पापके कार्योंका उपदेश देना सो पापोपदेश नामक अनर्थदण्ड है। इसके करनेसे जीवका दुर्गतिमें प्रवेश होता है ॥३८४-३९०।।
. चक्की, उखली, मूसल, कुश, कुदाली, फावड़ा, तवा, कड़ाही और दांतला (हंसिया) इन्हें कोई माँगे तो नहीं देना श्रेष्ठ है। धनुष, कमान, तीर, तलवार, पिंजड़ा, छुरी, कुल्हाड़ी, सिल, लोढ़ा, दांतन धोवण, बाण, जेवरा (रस्सी), बेड़ी, रथ, गाड़ी, वाहन, अग्नि तथा उपला (गोबरके
१ धोलिधावडा हरडो लाख स० २ नील फूल आफू माहुरो स० ३ उखली स०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org