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________________ क्रियाकोष Jain Education International छन्द नाराच तजेहि द्रव्य पारको सुसंनिधि निरन्तरं, भवन्ति भूमिनाथ भोगभूमि पाय है वरं । लहेवि सर्वबोध सिद्धकान्तया सुनैन को, अतीव मूर्ति तासकी सहाय चैन दैन को ॥ २९६ ॥ दोहा जाकी कीरति जगतमें, फैले अति विस्तार | उज्ज्वल शशिकिरणां जिसी, जो अदत्तव्रत धार ॥ २९७॥ सदा हरै परद्रव्यको, महापाप मति जोर । पड्यो रह्यो भूमें धर्यो, गहै सु निहचै चोर ॥ २९८ ॥ अडिल्ल छन्द सदा दरिद्री शोक रोग भय जुत रहै, पापमूर्ति अति क्षुधा तृषा वेदन सहै । पुत्र कलत्र रु मित्र नहि कोऊ जासके, चोरी अर्जित पाप उदै भो तासके ||२९९|| दोहा त्यजन अदत्त सुवरतको, अरु चोरी फल ताहि । सुनहि गहो व्रतको सुधी, चोरी भाव लजाहि ॥ ३००॥ कदाचित् दोष लगता है अतः उसका एक देश ही पालन होता है । भाव यह है कि अचौर्याणुव्रती मनुष्य स्थूल चोरीका ही त्याग करता है, सूक्ष्म चोरीका नहीं । लोकमें जिसे सब लोग चोरी मानते हैं वह स्थूल चोरी कहलाती है और जो लोकमें चोरी नामसे प्रसिद्ध नहीं है वह सूक्ष्म चोरी कहलाती है || २९५ ॥ जो अदत्त पर द्रव्य ग्रहणका त्याग करता है वह निरन्तर उत्तम निधियोंको प्राप्त होता है, पृथिवीपति होता है, उत्तम भोगभूमिको प्राप्त करता है, केवलज्ञानको प्राप्त कर मुक्तिकान्ताको प्राप्त होता है और संसार दशामें उसका शरीर सुन्दर तथा सुखदायक होता है ॥ २९६ ॥ जो अदत्त त्याग व्रतको धारण करता है उसकी चन्द्रकिरणके समान उज्ज्वल कीर्ति जगतमें अत्यन्त विस्तारको प्राप्त होती है । जो किसीके पड़े, रखे अथवा पृथ्वीमें गड़े धनको हरण करता है वह निश्चित ही चोर है ।। २९७ २९८ || जो सदा दरिद्री रहता है, रोग शोक और भयसे सहित होता है, पापकी मूर्ति जैसा जान पड़ता है, क्षुधा तृषाकी पीड़ा सहन करता है और पुत्र, स्त्री तथा मित्र आदिसे रहित होता है उसके चोरीसे अर्जित पापका उदय जानना चाहिये ॥ २९९ ॥ ग्रन्थकर्ता कहते हैं कि हे ज्ञानीजनों ! अदत्तत्याग व्रत और चोरीके फलको जानकर व्रतको ग्रहण करो और चोरीका त्याग करो । यह चोरीका भाव लज्जाको उत्पन्न करनेवाला है ॥ ३००॥ १ निधीश है निरन्तरं स० २ भूले धर्यो ख० स० ४७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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