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________________ क्रियाकोष ग्रंथ त्रिवर्णाचारजु मांहि, वरणन कीयो है अधिकाहि । मतलब सो तामें इक जान, मैं संक्षेप कहूं सुखदान ॥ २२४॥ रितुवंती वनिता जब थाय, चलण महा विपरीत चलाय । प्रथम दिवसतें ही गृहकाम, देय बुहारी सिगरे धाम ॥ २२५॥ अवर हाथमांहीं ले छाज, फटके सोधै वीणै नाज । बालक कपडा पहिरा होय, वाहि खिलावैं सगरे लोय ॥ २२६॥ आपसमें तिय हूजे सबै, न करे शंका भींत जबै । मांजै सब हंडवाई सही, जीमणकी थाली हू गही || २२७॥ जिह थाली में सिगरे खांहि, ताहीमें वा असन करांहि । जल पीवेको कलस्यो एक, सबही पीवें रहित विवेक ॥२२८॥ 'क्रियाकोष ग्रंथनमें कही, रितुवंती जो भाजन लही । गृह चंडार तणा को जिसो, वोहू भाजन जाणो तिसो ॥ २२९॥ और कहा कहिये अधिकाय, वह वासणमांही जो खाय । ताके दोषतणो नहि पार, क्रियाहीण बहु जाणि निवार ॥२३०॥ निसिको पति सोवत है जहां वाहू सयन करत है तहां । " दुहुं आपस में परसत देह, यामें मत जाणो संदेह ॥२३१॥ त्रिवर्णाचार ग्रंथमें इन क्रियाओंका विस्तारसे वर्णन है । मैं यहाँ उनका सार संक्षेपमें कहता हूँ ॥२२३-२२४॥ जब स्त्री ऋतुमती होती है तब वह अत्यन्त विपरीत प्रवृत्ति करती है । वह पहले ही दिन संपूर्ण घरमें झाड़ने - बुहारनेका काम करने लगती है, हाथमें सूप लेकर अनाजको फटकती एवं शोधती है, कपड़ा पहिने हुए बालकको खिलाती है, फिर उसी बालकको सब लोग खिलाने लगते हैं, आपसमें स्त्रियाँ एकत्रित हो मिलने तथा बात करनेमें कोई शंका नहीं करती, घरके बर्तनोंको माँजती है, थालीमें भोजन करती हैं, यही नहीं, जिस थालीमें घरके सब लोग भोजन करते हैं उसीमें भोजन करती हैं, पानी पीनेका कलश भी वही रखती हैं जिससे सब लोग पीते हैं ।।२२५-२२८।। ३५ क्रियाकोष ग्रंथोंमें कहा गया है कि ऋतुमती स्त्री जिस बर्तनमें भोजन करती है वह चाण्डालके बर्तनके समान है, उसमें अपार दोष लगता है। इन सब हीन क्रियाओंको जान कर उनका निवारण करना चाहिये ।। २२९-२३०॥ रात्रिमें पति जिस कक्षमें शयन करता है उसीमें ऋतुमती स्त्री भी शयन करती है। दोनोंका परस्पर शरीरस्पर्श भी नि:संदेह होता है । कोई १. क्रियाकाण्ड न० स० २. गमार स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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