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क्रियाकोष
मद्य मांस मधु तीन मकार, इन आठोंको कर परिहार । अतीचार जुत तज अनचार, आठ मूल गुण धारो सार ॥६४॥ त्रस अनेक उपजैं 'इन मांही, जिन भाष्यो कछु संशय नांही । अरु जे हैं बाईस अभक्ष, इनको दोष लगे परतक्ष || ६५ ॥ बाईस अभक्ष्य दोषवर्णन चौपाई
ओला नाम गडालख जान, अनछाना जलको बंधान । २ दहीबडाको विदल कहंत, खाता पंचेंद्री उपजंत ॥६६॥ निशिभोजन खाये जो रात, अरु वासी भखिये परभात | बहुबीजा जामें कण घणा, कहिये प्रकट बिजारा तणा ||६७॥ जिहिं फल बीजनके घर नांहि, सो फल बहुबीजा कहवाहिं । बेंगण महापापको मूर, जे खावें ते पापी क्रूर ॥ ६८ ॥ संधकी विधि सुन एह, जिम जिनमारग भाषी जेह । राइ लूण आदी बहु दर्व, फल मूलादिकमें धर सर्व ॥ ६९॥ "नांखें तेलमांहि जे सही, नाम अथाणो तासों कही । तामैं उपजैं जीव अपार, जिह्वा लंपट खाय गंवार ॥७०॥
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करना आठ मूल गुण है । उपर्युक्त आठों वस्तुओंका अतिचार और अनाचार सहित त्याग कर आठ मूल गुणोंको धारण करो ||६३-६४|| जिनेन्द्र भगवानने निःसंदेह कहा है कि इन सबमें अनेक त्रस जीवोंकी उत्पत्ति होती है । इनके सिवाय जो बाईस अभक्ष्य कहे हैं उनका प्रत्यक्ष ही दोष लगता है || ६५॥
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बाईस अभक्ष्यों का वर्णन
ओला, जलेबी और अनछाना जल अभक्ष्य हैं । दहीबड़ाको द्विदल कहते हैं, इसे खाते ही पंचेन्द्रिय जीवोंकी उत्पत्ति होती है || ६६ || रात्रिमें भोजन करना अथवा प्रभात कालमें वासी भोजन करना अभक्ष्य है । बहुबीजक अभक्ष्य है । जिस फलमें बीजोंके घर नहीं होते वह बहुबीजक कहलाता है। बैंगन (भटा ) महान पापका मूल है । जो निर्दय मनुष्य इसे खाते हैं वे क्रूर, निर्दय तथा पापी हैं ||६७-६८ || हे राजन् ! अब तुम संधान (अथाना) की विधि सुनो जैसी कि जिनमार्गमें कही गई है । राई, नमक आदि बहुतसे पदार्थों को एकत्रित कर उन सबको फल तथा मूली आदिकमें रखते हैं, पीछे तेलमें डालते हैं । इसे अथाना कहते हैं । इस अथानेमें अपार
१ तिसि स० २ घोरि वरा लखि जान स० ३ घोरवराको न० स० ४ भक्षे स० ५ जीमें हैं ते पापी क्रूर न० ६ फूलादिक स० ७ राखें स०
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