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________________ - श्री कवि किशनसिंह विरचित इह त्रेपन किरिया थकी, सुरग मुक्ति सुख थाय । भविजन मन वच काय शुध, पालहु चित हरषाय ॥६०॥ त्रेपन क्रिया नाम उक्तं च गाथागुणवय तव सम पडिमा दानं जलगालणं च अणच्छमियं । दसण णाण चरित्तं किरिया तेवण्ण सावया भणिया ॥६१॥ सवैया-इकतीसा मूल गुण आठ अणुव्रत पंच परकार, शिक्षाव्रत चार तीन गुणव्रत जांनिए । तपविधि बारह औ एक साम्य भाव ग्यारा, प्रतिमा विशेष चार भेद दान मांनिए । एक जलगालण अणथमिय एकविधि, दृग ग्यान चरण त्रिभेद मन आंनिये । सकल क्रियाको जोर त्रेपन जिनेश कहै, ___अब याकों कथन प्रत्येक तें बखानिए ॥२॥ आठ मूल गुण चौपाई इस त्रेपन किरियामें जान, प्रथम मूलगुण आठ बखान । पीपर वर उंबर फल तीन, पाकर फल रु कटुंबर हीन ॥६३॥ है इसलिये हे भव्यजन ! मन वचन कायको शुद्ध कर हर्षित चित्तसे इनका पालन करो ॥६०॥ त्रेपन क्रियाओंके नाम जैसे कि गाथामें कहे हैं-आठ मूल गुण, बारह व्रत, बारह तप, एक समभाव, ग्यारह प्रतिमाएँ, चार दान, एक जलगालन, एक अनस्तमित भोजन और तीन दर्शन ज्ञान चारित्र-ये सब मिलाकर श्रावककी त्रेपन क्रियाएँ कही गई हैं ॥६१॥ यही भाव सवैया छन्दमें कविने प्रकट किया हैं-आठ मूल गुण, पाँच प्रकारके अणुव्रत, चार शिक्षाव्रत, तीन गुणव्रत, बारह तप, एक प्रकारका साम्यभाव, ग्यारह प्रतिमाएँ, चार दान, एक जल छानना, एक अनथऊ (सूर्यास्तके पहले भोजन करना) और तीन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र, जिनेन्द्र भगवानने इन सब क्रियाओंका जोड़ त्रेपन कहा है। अब इन सबका पृथक् पृथक् वर्णन करते हैं ॥६२॥ आठ मूल गुण इन त्रेपन क्रियाओंमें सबसे पहले आठ मूल गुणोंका व्याख्यान करते हैं। पीपल, बड़, ऊमर, पाकर और कठूमर इन पाँच फलों तथा मद्य, मांस, मधु इन तीन मकारोंका परित्याग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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