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________________ क्रियाकोष भो करुणाकर जिनवरदेव, भव भवमें पाऊं तुम सेव । जबलों शिव पाऊं 'जगनाथ, तबलों पकरो मेरो हाथ ॥५३॥ इत्यादिक थुति विविध प्रकार, गद्य पद्य शत सहस अपार । पुनि गौतम गणधर नमि पाय, अवर सकल मुनिकों सिर नाय ॥५४॥ जिती अर्जिका सभा मझार, २श्रावक जनहि जु बुद्धि विचार । यथायोग्य सबकों नृप कही, पुनि नर कोठे बैठो सही ॥५५॥ जाके देव भगति उतकिष्ट, तासों ताकै गुरुको इष्ट । जिनभाषी वाणी सरधान, महा विवेकी अति परधान ॥५६॥ तास महातमको अधिकार, अरु ताकै गुणको निरधार । वरनन कौं कवि समरथ नाहि, बुधजनजानहु निज चितमांहि ॥५७॥ ता पीछे अवसर कौं पाय, गौतम प्रति नृप प्रश्न कराय । देशव्रती श्रावककी जाणि, त्रेपन क्रिया कहहु वखाणि ॥५८॥ दोहा होनहार तीर्थेश सुन, इम भाषै भगवंत । त्रेपन किरिया तुझ प्रति, कहों विशेष विरतंत ॥५९॥ हे दयाकी खान ! जिनेन्द्र देव ! मैं भव भवमें आपकी सेवाको प्राप्त होता रहूँ। हे जगन्नाथ ! जब तक मैं मोक्ष प्राप्त करूँ तब तक आप मेरा हाथ पकड़े रहिये-मुझे सहारा देते रहिये ॥५३॥ इस प्रकार गद्यपद्यमय नाना प्रकारकी सहस्रों स्तुतियाँ कर श्रेणिक राजाने गौतम गणधर तथा अन्य मुनिराजोंको शिर झुकाकर नमस्कार किया ॥५४॥ सभामें जितनी आर्यिकाएँ तथा श्रावकजन विद्यमान थे अपनी बुद्धिसे विचार कर राजाने सबकी यथायोग्य विनय की। पश्चात् मनुष्योंके कोठेमें बैठ गये ॥५५॥ ठीक ही है जिसके उत्कृष्ट देवभक्ति होती है, जो गुरुको इष्ट मानता है, जिसे जिनवाणीकी श्रद्धा होती है और जो महा विवेकावन्त जीवोंमें अत्यन्त प्रधान होता है उसके माहात्म्य तथा गुणोंका वर्णन करनेके लिये कवि भी समर्थ नहीं होता है, ज्ञानी जन उसका मनमें विचार ही कर सकते हैं ॥५६-५७।। तदनन्तर अवसर पाकर राजा श्रेणिकने गौतम गणधरसे प्रश्न किया कि हे भगवन् ! देशव्रती श्रावककी त्रेपन क्रियाओंका व्याख्यान कीजिये ॥५८॥ गौतमस्वामीने कहा कि हे होनहार तीर्थंकर ! भगवानने जिस प्रकार कहा है उस प्रकार मैं त्रेपन क्रियाओंका विशेष वृत्तान्त तेरे लिये कहता हूँ सो सुन ॥५९॥ इन त्रेपन क्रियाओंसे मनुष्य स्वर्ग और मोक्षके सुख प्राप्त करता १शिवनाथ न० २ श्रावकवनिता व्रतनि विचार स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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