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________________ ३०२ श्री कवि किशनसिंह विरचित पारसनाथ सु जनम अवर तप ग्यारसि कारी, जनम चन्द्रप्रभ तास दिवस दिक्षाहू धारी; चौदस शीतल ज्ञान सुमति सुदि दसमी विधि तसु, ग्यारस केवल अजित जिनेश्वर प्रगट भयो जसु; प्रभु अभिनंदन चौदसि दिवस, लोकालोक प्रकासियो । दिन पाँच कल्याणक आठ जुत, पौष महीनो भासियो || १८८२ ॥ * वदि छठि गरभ सु पदम जनम तप शीतल बारसि, चौदसि शिव जिन ऋषभ ज्ञान श्रेयांस अमावसि; अभिनंदन जिन सेत प्रतिपदा दीक्षा धारी, वासुपूज्य हि ज्ञान सुकल दुनिया सुखकारी; सुदि चौथि विमल तप जनम पुनि विमल ज्ञान छठि प्रगट ही । नवमी तप दसमी जनम दुहु अजित कल्याणक दिवस ही || १८८३ ॥ अभिनंदन जिन जनम सुकल बारसि दिन जानो; धरमनाथ जिन जनम अवर तप तेरसि मानो; तप कल्याणक होता है । इस प्रकार मगसिर माहमें सात तीर्थंकरोंके कुल मिलाकर ग्यारह कल्याणक दिवस आते हैं ।। १८८१|| पौष वद एकादशीको पार्श्वनाथका जन्म तथा तप, पौष वद एकादशीको चन्द्रप्रभका जन्म तथा तप, पौष वद चतुर्दशीको शीतलनाथका ज्ञान, पौष सुद दशमीको सुमतिनाथका ज्ञान, पौष. सुद एकादशीको अजितनाथका केवलज्ञान और पौष सुद चतुर्दशीको अभिनन्दननाथका ज्ञान कल्याणक होता है, इस प्रकार पौष माहके पाँच दिवसोंमें छह तीर्थंकरोंके आठ कल्याणक कहे गये हैं? ॥१८८२॥ माघ वद षष्ठीको पद्मप्रभका गर्भ, द्वादशीको शीतलनाथका जन्म और तप, चतुर्दशीको ऋषभनाथका निर्वाण, अमावसको श्रेयांसनाथका ज्ञान, माघ सुद पडिवाको अभिनंदननाथका तप, द्वितीयाको वासुपूज्यका ज्ञान, चतुर्थीको विमलनाथका जन्म तथा तप, षष्ठीको विमलनाथका * यहाँ से आगे छन्द १८८३ ' १९१३ तकके छन्द मुद्रित प्रतियोंमें अनुपलब्ध हैं अतः ये नरयावलीसे प्राप्त वि० सं० १८७० की हस्तलिखित प्रतिसे लिये गये है । क० प्रतिमें कुछ पद्य उपलब्ध है । १ पौष सुदी पूर्णिमाको धर्मनाथका ज्ञानकल्याणक भी होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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