________________
क्रियाकोष
३०३
पूरनमासी ज्ञान प्रगट जिन धरम जिनेश्वर,
माह महीना माहि भये कल्याणक जे वर; दुहु छप्पय माहि तेरह दिवस उच्छव सोलह लखि समै । मन वचन काय कर सीस धुनि किशनसिंघ चरननि नमै ॥१८८४||
पदम मोक्ष वदि चौथि सुपारसनाथ ज्ञान छठि, शशिप्रभ साते ज्ञान मोक्ष पुनि जानि सुपारसि; पुष्पदंत जिन गरभ जनम श्रेयांस तप ग्यारसि,
पुनि जिन वृषभ सुबोध मोक्ष मुनिसुव्रत चारसि; तप जनम वासुपूजि हि चतुदशि तीज गरभ अर जिन सही । सिव मल्लि पंचमी फालगुन आठे संभव गरभ ही ॥१८८५॥
दोहा फागुन दिन ग्यारह विषै कल्याणक जिनराय । पन्द्रह किये त्रिजगपती, नमै किसन सिर नाय ॥१८८६॥
छप्पय
पारस चौथि सुज्ञान चन्द्रप्रभ गरभ पंचमि य, आठे सीतल गरभ ऋषभ जनम रु तप नवमि य; सुव्रत दसमिय जनम अवर सुदि तेरसि सन्मति,
मावसि ज्ञान अनंत मोक्ष जिन अरहजु सिव गति; ज्ञान, नवमीको अजितनाथका तप और दशमीको जन्म, सुद द्वादशीको अभिनन्दननाथका जन्म, त्रयोदशीको धर्मनाथका जन्म तथा तप, और पूर्णिमाको धर्मनाथका ज्ञान कल्याणक हुआ । इस प्रकार दो छप्पयोंमें प्रतिपादित उत्सवके तेरह दिनोंमें सोलह कल्याणक हुए। कवि किशनसिंह शिर झुकाकर मन वचन कायसे उन तीर्थंकरोंके चरणोंमें नमस्कार करते हैं ॥१८८३-१८८४॥
__ फागुन वद चतुर्थीको पद्मप्रभका मोक्ष, षष्ठीको सुपार्श्वनाथका ज्ञान, सप्तमीको चन्द्रप्रभका ज्ञान तथा सुपार्श्वनाथका मोक्ष, एकादशीको पुष्पदन्तका गर्भ, श्रेयांसनाथका जन्म तथा तप, वृषभनाथका ज्ञान, मुनिसुव्रतका मोक्ष, चतुर्दशीको वासुपूज्यका जन्म तथा तप, सुद तृतीयाको अरहनाथका गर्भ, पंचमीको मल्लिनाथका मोक्ष और अष्टमीको संभवनाथका गर्भ कल्याणक होता है। इस प्रकार फागुनके ग्यारह दिनोंमें तीर्थंकरोंके पन्द्रह कल्याणक हुए। किशनसिंह उन्हें मस्तक झुकाकर नमस्कार करते हैं ॥१८८५-१८८६॥
चैत्र वद चतुर्थीको पार्थनाथका ज्ञान, पंचमीको चन्द्रप्रभका गर्भ, अष्टमीको शीतलनाथका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org