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________________ २७० श्री कवि किशनसिंह विरचित दिन बाईस मझार वास षोडश कहे, धरमचक्र व्रत धारि पारणा छह गहे ॥ १६९८॥ बड़ी मुक्तावली व्रत अडिल्ल छंद एक वास दुय तीन चार पण थापई, चार तीन दुय एक धार अघ कापई; सबै वास पणवीस पारणा नव गही, गुरु मुक्तावली वरत दिवस चौतीस ही ॥१६९९॥ भावना-पच्चीसी व्रत अडिल्ल छंद दसमी दस उपवास पंचमी पंच है, आठै वसु उपवास प्रतिपदा दुय गहै; सब प्रोषध पच्चीस शील जुत कीजिये; भावना-पचीसी वरत गहीजिये ॥ १७००॥ नवनिधि व्रत अडिल्ल छंद ए चौदा चौदसि चौदा रतन तणी करै, नव निधिकी तिथि नवमी नव प्रौषध धरै ; सोलह उपवास और छह पारणाओंके द्वारा यह धर्मचक्र व्रत पूर्ण होता है । इसे ग्रहण करना चाहिये ॥१६९८|| बड़ी मुक्तावली व्रत एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा, इस प्रकार पच्चीस उपवास और नौ पारणाओंके द्वारा चौतीस दिनमें बड़ी मुक्तावली व्रत पूर्ण होता है । यह व्रत पापों को नष्ट करनेवाला है ॥१६९९॥ Jain Education International भावना पच्चीसी व्रत अष्टमीके आठ और प्रतिपदाके दो, इस प्रकार शीलका करना भावना पच्चीसी व्रत है । इसे ग्रहण करना दशमीके दश, पंचमीके पाँच, पालन करते हुए पच्चीस प्रोषध चाहिये ||१७००|| नवनिधि व्रत चौदह रत्नोंको लक्ष्य कर चौदह चतुर्दशी, नौ निधियोंको लक्ष्य कर नौ नवमी, रत्नत्रयको For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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