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________________ क्रियाकोष २६९ लघु मृदंग मध्य व्रत अडिल्ल छन्द दोय वास फिर असन फिर तिहुँ चऊ करै, पांच वास धरि चार तीन दुय अनुसरै; दिवस तीसमें वास कहे तेईस है, लघु मृदंग मधि सात पारणा जुत गहै ॥१६९६॥ बड़ा मृदंग मध्य व्रत गीता छन्द उपवास इक करि दोय थापै तीन चहु पण छह धरै, पुनि सात आठ रु चढे नवलों फेरि वसु सात जु करै, छह पाँच चार रु तीन दुय इक वास इक्यासी गहै, मिरदंग मधि जु नाम दीरघ पारणा सत्रह लहे ।।१६९७॥ धर्मचक्र व्रत __ अडिल्ल छन्द एक वास करि दोय तीन पनि चहं धरे, ता पीछे करि पांच एक पुनि विस्तरे; लघु मृदंग मध्यव्रत दो उपवास, एक आहार, तीन उपवास, एक आहार, चार उपवास, एक आहार, पाँच उपवास, एक आहार, चार उपवास, एक आहार, तीन उपवास, एक आहार और दो उपवास, एक आहार, इस प्रकार तीस दिनमें तेईस उपवास और सात पारणाएँ लघु मृदंग व्रतमें होती है। इसे धारण करना चाहिये ॥१६९६।। बड़ा मृदंग मध्य व्रत एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, छह उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा, आठ उपवास एक पारणा, नौ उपवास एक पारणा, आठ उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा, छह उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, और एक उपवास एक पारणा, इस क्रमसे इक्यासी उपवास और सत्तरह पारणाओंके द्वारा अठानवे दिनमें यह बड़ा मृदंग मध्य व्रत पूर्ण होता है ॥१६९७॥ धर्मचक्र व्रत एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा, इस क्रमसे बाईस दिनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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