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________________ २६२ श्री कवि किशनसिंह विरचित जिन मुखावलोकन व्रत दोहा जिन मुख अवलोकन वरत, करिये भादों मास । जिन मुख देखे प्रात उठि, अवर न पैखै वास ॥१६५४॥ चाल छन्द प्रोषध इक मास इकन्तर, कांजी जुत करिये निरन्तर । अथवा चंद्रायण करिहै, लघु सकति इकन्त जु धरिहै ॥१६५५॥ संख्या धरि वस्तु जु केरी, तातें नहि ले अधिकेरी । इह वरत महा सुखदाई, चहु गति भव-भ्रमण नसाई ॥१६५६॥ लघु सुख-संपत्ति व्रत चाल छन्द सुख संपत्ति व्रत दुय भेद, तिनकी विधि भवि सुनि एव । षोडश तिथि प्रोषध षट दश, लहुँही सुखदाय अनेकश ॥१६५७|| बडा सुख संपत्ति व्रत चाल छन्द पडिवा इक दोयज दोई, तिहुँ तीज चौथ चहुँ जोई । पांचै पण छठ छह जाणो, सातै पुनि सात बखाणो ॥१६५८॥ जिन-मुखावलोकन व्रत __ जिन-मुखावलोकन व्रत भादों मासमें किया जाता है। इसमें प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर जिनेन्द्र देवका मुख देखे, अन्य कुछ न देखे ॥१६५४॥ एक उपवास और शेष कांजीके साथ एकाशन करे अथवा चान्द्रायण व्रत करे अर्थात् कृष्ण पक्षमें प्रतिदिन एक एक ग्रास कम करता जावे और शुक्ल पक्षमें एक एक ग्रास बढ़ाता जावे। यदि शक्ति कम है तो एकाशन करे। खाने-पीनेकी जितनी वस्तुओंकी संख्या निश्चित की है उससे अधिक न लेवे । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह व्रत महा सुखदायी तथा चतुर्गतिरूप संसारके भ्रमणको नष्ट करनेवाला है॥१६५५१६५६।। लघु सुख संपत्ति व्रत सुख संपत्ति व्रत के दो भेद हैं, एक लघु और दूसरा बड़ा। हे भव्यजीवों ! उसकी विधि इस प्रकार सुनो। सोलह तिथियोंके सोलह प्रोषध करना यह लघु सुखसंपत्ति व्रत है। इसके करनेसे अनेक सुखोंकी प्राप्ति होती है ॥१६५७॥ बड़ा सुखसंपत्ति व्रत पडिवाका एक, दूजके दो, तीजके तीन, चौथके चार, पाँचमके पाँच, छठके छह, सातमके सात, आठमके आठ, नवमीके नौ, दशमीके दस, ग्यारसके ग्यारह, बारसके बारह, तेरसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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