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________________ क्रियाकोष २६१ सर्वार्थसिद्धि व्रत गीता छन्द कातिक सुकल अष्टम दिवसतै, अष्ट वास जु कीजिये, तसु आदि अंत इकंत दस दिन शील सहित गनीजिये; जिनराज श्रुत गुरु पूज उत्सव सहित नृत्यादिक करै, सर्वार्थसिद्धि जु नाम व्रत इह मोक्ष सुखको अनुसरै ॥१६४९॥ तीन चौबीसी व्रत दोहा व्रत चौबीसी तीनकी, सुकल भाद्रपद तीज । प्रोषध कीजै शील जुत, सुरसुख शिवको बीज ॥१६५०॥ श्रुतस्कन्ध व्रत दोहा श्रुत स्कन्ध व्रत तीन विधि, उत्तम मध्य कनिष्ठ । षोडश प्रोषध तीस दुय, वासर माहि गरिष्ठ ॥१६५१॥ दस प्रोषध दिन तीसमें, मध्य सुविधि लखि लेह । वसु प्रोषध इक वासमें, है कनिष्ठ व्रत एह ॥१६५२॥ कथन विशेष कथा-मही, द्वादशाङ्गके भेद । त्रिविध जिनेश्वर भाषियो, कारण कर्म उछेद ॥१६५३॥ सर्वार्थसिद्धि व्रत कार्तिक शुक्ल अष्टमीके दिनसे आठ उपवास तथा उपवासके आदि और अन्तमें एकाशन, इस प्रकार दश दिन शील व्रत करे और देव-शास्त्र-गुरुकी पूजा नृत्य गान आदिके साथ करे। यह सर्वार्थ सिद्ध नामका व्रत, मोक्षसुखको देनेवाला है ॥१६४९॥ तीन चौबीसी व्रत भादों शुक्ला तीजको शील सहित प्रोषध करके यह तीन चौबीसी व्रत किया जाता है। इससे स्वर्ग और मोक्ष सुखकी प्राप्ति होती है ॥१६५०।। श्रुतस्कन्ध व्रत श्रुतस्कन्ध व्रतकी विधि उत्तम, मध्यम और जघन्यके भेदसे तीन प्रकारकी है। बत्तीस दिनमें सोलह उपवास करना उत्तम विधि है, तीस दिनमें दश उपवास करना मध्यम विधि है और एक वर्षमें आठ उपवास करना जघन्य विधि हैं। इसका विशेष वर्णन तथा द्वादशांगके भेद कथामें कहे गये हैं। यह तीनों प्रकारका व्रत कर्मका उच्छेद करनेवाला है, ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है ॥१६५१-१६५३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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