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________________ २६० श्री कवि किशनसिंह विरचित इक सौ अस्सी एकंत, इतने ही वास करंत । दिन साठ तीनसै धीर, पालै निति शील गहीर ॥१६४३॥ इह शील कल्याणक नाम, व्रत है बहुविधि सुखधाम । है चक्री काम कुमार, हरि प्रतिहरि बल अवतार ॥१६४४॥ तीर्थङ्कर पदवी पावै, समकित जुत व्रत जो ध्यावै । ऐसे लखि जे भवि जाण, करिये व्रत शील कल्याण ॥१६४५॥ शील व्रत ' चाल छन्द अब सुनहु शील व्रत सार, जैसो आगम निरधार । वैशाख सुकल छठि लीजै, प्रोषध उपवास करीजै ॥१६४६॥ अभिनंदन जिनवर मोषं, कल्याणक दिन शिव पोषं । शुभ शीलवरत तसु नाम, करि पंच वरष सुखधाम ॥१६४७॥ नक्षत्र माला व्रत गीता छन्द अश्विन नखतथकी जु वासर च्यार अधिक पंचास ही, तिहि मध्य एकासन सताइस बीस सात उपवास ही; जुत शील मन वच तन त्रिशुद्धहि करि विवेकी चावस्यों, माला नक्षत्र सुनाम व्रत तैं छूटियै विधि-दाव स्यों ॥१६४८॥ हैं। दोनोंमें मिलाकर तीन सौ साठ दिन लगते हैं । इस व्रतमें नित्य प्रति शीलव्रतका पालन करना चाहिये। यह शील कल्याणक व्रत बहुत प्रकारके सुखोंका स्थान है। जो सम्यग्दर्शनके साथ इस व्रतका पालन करते हैं वे चक्रवर्ती, कामदेव, नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र और तीर्थंकर पदवीको प्राप्त करते हैं, ऐसा सोचकर भव्यजीव इस व्रतका पालन करें ॥१६४२-१६४५॥ शील व्रत __ अब श्रेष्ठ शील व्रतका वर्णन सुनो, जैसा कि आगममें कहा गया है। वैशाल शुक्ल षष्ठी के दिन प्रोषधोपवास कर यह व्रत किया जाता है। यह तिथि अभिनन्दन भगवानके मोक्ष कल्याणककी है अतः उनकी पूजा करना चाहिये। यह शीलव्रत पाँच वर्ष तक किया जाता है तथा सुखका स्थान है अर्थात् मनुष्य और स्वर्गके सुख देनेवाला है ॥१६४६-१६४७॥ नक्षत्र माला व्रत वर्षमें अश्विनी नक्षत्रके चौपन दिन होते हैं उनमें सत्ताईस दिन एकाशन और सत्ताईस दिन उपवास करना चाहिये। विवेकीजन शील सहित मन वचन कायकी त्रिशुद्धतापूर्वक बड़े उत्साहसे इस नक्षत्रमाला व्रतको धारण करें और कर्मके दावसे मुक्त होवें ॥१६४८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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