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________________ क्रियाकोष श्वेत पंचमीको व्रत धार, कमलश्री पायो फल सार । भविसदत्त सुत मिलियो आय, तिनहूँ व्रत कीनो मन लाय || १६३६॥ तास चरित माहे विसतार, वरनन कीयो सब निरधार । अजहूँ नर तिय करिहै सोय, त्रिविध सुधी तैसो फल होय || १६३७|| शील कल्याणक व्रत दोहा शील कल्याणक व्रत तणो, भेद सुनो जे संत । मन वच काय त्रिशुद्धि करि, धारौ भवि हरषंत ॥१६३८॥ चाल छन्द तिरयंचणि सुर तिय नारी, चौथी बिनु चेतन सारी । पणि इन्द्रिनिते चहुँ गुणिये, तिनि संख्या बीस जु मुणिये || १६३९|| मन वच तन तें ते बीस, गुणतै है तीस रु तीस । कृत कारित अनुमोदनतें, गुणिये पुनि साठहि गनते || १६४०॥ इक सौ अस्सी हुइ जोई, प्रोषध करु भवि धरि सोई । इक वरष मांहि निरधार, करिये पूरण सब सार || १६४१॥ इक दिन उपवास जु कीजै, दूजो दिन असन जु लीजै । तीजै दिन फिर उपवास, इम करहु इकंतर तास ॥१६४२॥ २५९ इस सित पंचमी व्रतको धारण कर कमलश्रीने श्रेष्ठ फल प्राप्त किया। जब भविष्यदत्त मिले तब उन्होंने भी मन लगा कर इस व्रतको किया । भविष्यदत्त चरित्रमें इसका विस्तारसे वर्णन किया गया है वहाँसे जानना चाहिये । आज भी जो ज्ञानी स्त्री पुरुष मन वचन कायकी शुद्धतापूर्वक इस व्रतको करते हैं वे भी उसी प्रकारके फलको प्राप्त होते हैं ।।१६३६-१६३७॥ शील कल्याणक व्रत हे सत्पुरुषों ! अब शील कल्याणक व्रतका भेद सुनो और हर्षित होकर मन वचन कायकी शुद्धतापूर्वक उसे धारण करो || १६३८ ।। तिरश्ची, देवी और मानुषी ये तीन चेतन स्त्रियाँ हैं और एक अचेतन स्त्री चित्राम आदिकी है। इन चार प्रकारकी स्त्रियोंमें पाँच इन्द्रियोंका गुणा करने पर बीसकी संख्या आती है । उसमें मन वचन कायका गुणा करने पर साठ होते हैं । उनमें कृतकारित - अनुमोदनाका गुणा करने पर एक सौ अस्सी होते हैं। एक सौ अस्सी एकाशन और इतने ही उपवास करनेसे यह व्रत एक वर्षमें पूर्ण होता है ।। १६३९ - १६४१।। Jain Education International इसकी विधि यह है कि एक उपवास उसके बाद एक एकाशन, फिर एक उपवास तदनन्तर एक एकाशन इस प्रकार एक सौ अस्सी एकाशन और एक सौ अस्सी उपवास होते For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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