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श्री कवि किशनसिंह विरचित
सो र ति सुर नृप सुख पाय, अनुक्रमतें शिवथान लहा उद्यापन विधि करिये सार, सकति जेम नहि हीन विचार ॥१६२९॥ जिनेन्द्र गुण संपत्ति व्रत
चाल छन्द
जिनगुण संपत्ति व्रत धार, सुनिये तिनको अवधार । दस अतिसै जिन जनमत ही, लीजे उपजै लखि सति ही || १६३०॥ उपज्यौ जब केवल ज्ञान, दस अतिसै प्रगटै जान । इम अतिसय बीस जु केरी, करि बीस दसै सुखवेरी || १६३१॥ देवाकृत अतिसय जाणो, चौदस चौदह तिह ठाणो । वसु प्रातिहार्य जिन देव, वसु आठै करिये एव ॥ १६३२||
भावन सोलह कारण की, पडिमा षोडश करि नीकी । पांचौ कल्याणक जाकी, पांचौ पांचे करि ताकी ॥१६३३॥ प्रोषध ए सठि जाणो, जुत सील भविक जन ठाणो । उत्तम सुर नर सुख पावै, अनुक्रमतें शिव पहुँचावै ॥१६३४॥ पंचमी व्रत चौपाई
फागुण असाढ कातिकते एह, सित पंचमि तें व्रतको लेह । पैसठ प्रोषध करिये तास, वरष पांच पांच परि मास ॥१६३५॥ मोक्ष प्राप्त करते हैं । व्रत पूर्ण होनेपर शक्तिके अनुसार उद्यापन करना चाहियेकरे और न अधिक ।।१६२५ -१६२९॥
-न शक्तिसे हीन
जिनेन्द्र गुण संपत्ति व्रत
अब जिनेन्द्र गुण संपत्ति व्रतकी विधि सुनकर निश्चय करिये। जिनेन्द्र ( तीर्थंकर) के जन्म लेते ही दश अतिशय होते हैं तथा केवलज्ञान उत्पन्न होनेपर दश अतिशय प्रकट होते हैं । इस प्रकार इन बीस अतिशयोंको लक्ष्य कर बीस दशमी, देवकृत चौदह अतिशय होते हैं उन्हें लक्ष्य कर चौदह चतुर्दशी, आठ प्रातिहार्य होते हैं उन्हें लक्ष्य कर आठ अष्टमी, सोलह कारणभावनाओंको लक्ष्य कर सोलह पडिवा और पाँच कल्याणकोंको लक्ष्य कर पाँच पंचमी, इस प्रकार त्रेसठ प्रोषध करनेसे यह व्रत पूर्ण होता है । व्रतके दिनोंमें शीलव्रतका पालन करना चाहिये। जो भव्यजीव इस व्रतको करते हैं वे मनुष्य और देवगतिके उत्तम सुख प्राप्त कर अनुक्रमसे मोक्षको प्राप्त होते हैं ।। १६३०- १६३४॥
सित पंचमी व्रत
फागुन, अषाढ अथवा कार्तिकके शुक्ल पक्षकी पंचमीसे यह व्रत लिया जाता है । इसमें पेंसठ प्रोषध किये जाते हैं जो पाँच वर्ष और पाँच माहमें पूर्ण होते हैं || १६३५॥
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