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क्रियाकोष
दोकंत वरत धरि नाम, आगम न वखाण्यो ताम । पय ले एकंत करांही, सिर- खंड सुनाम धरांही ॥ १५२५॥ तंदुल केसर दधिमांही, करि गोली वरत कहांही । टीकी व्रत नाम सु लेई, वनिता सिर टीकी देई || १५२६॥
अरु तिलक वरतको धारै, बहु तिय सिर तिलक निकारै । करि देइ टको इक रोक, लेहै तिनकै अघ थोक || १५२७॥
कोथलीय व्रत धर नाम, बाँटे तिन तीसहि ठाम । मधि सोंठ मिरच धरि रोक, प्रभुता है भाषै लोक ॥। १५२८॥
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अभिलाषै ।। १५२९॥
पुनि रोटि व्रत ही ठानै, बाँटे घर घर मन आनै । अर वरत खोपरा भाषै, एकन्त तीस नारेल वरतको लेह, बाँटै घर घर खीर जु व्रत नाम धरावै, निज घर जो चावल ता मांही डारी, निपजावै खीर जु नारी । भरि ताहि कचोला मांही, बाँटे बहु घरि हरषाही ॥ १५३१॥
धरि नेह ।
दूध मंगावै || १५३०|
कांचीय वरत तिय धरिहै, कांचली दसबीस जु करिहै । निज सगपणकी जे नारी, तिनको दे हेत विचारी ॥ १५३२॥
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आगममें इसका वर्णन नहीं है। जिसमें दूध लेकर एकाशन कराती है उस व्रतका नाम श्रीखण्ड व्रत बताती हैं ।। १५२४ - १५२५ ।। जिसमें चावल, केशर और दहीकी गोलियाँ बनाकर एकाशन कराती हैं वह गोली व्रत कहलाता है । कितनी ही स्त्रियाँ टीकी व्रत लेती हैं वे परस्पर एक दूसरेको टीकी (बूंदा) लगाती हैं ।। १५२६|| कितनी ही स्त्रियाँ तिलक व्रत लेती हैं वे अनेक स्त्रियोंके माथे पर तिलक लगाती हैं। कोई टका व्रत लेती हैं वे परस्पर एक दूसरेके हाथ टका ( दो पैसा) का सिक्का रखती हैं ।। १५२७|| कोई कोथली व्रत लेती हैं वे कपड़े के रंग-बिरंगें बटुओंके भीतर सोंठ मिर्च तथा कुछ नकद सिक्का रखकर तीस की संख्यामें बाँटती हैं ।। १५२८|| कोई रोटी व्रत लेती हैं तथा घर घर रोटियाँ बाँटती हैं । कोई खोपरा व्रत लेती हैं वे तीस एकाशन कर घर घर तीस गरी गोला बाँटती हैं। कोई नारियल व्रत लेती हैं वे तीस एकाशन कर घर घर तीस नारियल स्नेहपूर्वक बाँटती हैं। कोई खीर व्रत लेती हैं वे अपने घर दूध मँगा कर चावलोंकी खीर बनाती हैं तथा उसे कटोरे में भरकर घर घर बाँटती हैं ॥। १५२९-१५३१।। कोई स्त्रियाँ कांचली व्रत लेती हैं। वे तीस कांचली (चोली) बनवाती हैं और अपनी रिश्तेदार स्त्रियोंको बाँटती हैं । वे स्त्रियाँ पहिन १. पखलों
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