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________________ २४२ श्री कवि किशनसिंह विरचित तिन पहिरे जूं उपजाही, त्रस घात पाप अधिकाही । जिनको व्रत नाम धरावे, सो कैसे शुभ फल पावे || १५३३॥ व्रत करि घृत नाम बखानो, घृत दे घर घर मन आनो । बांटत माखी तह परिहै, उपजाय पाप दुख भरिहै || १५३४॥ चूडाव्रत नाम धराही, करिकै मनमें हरषाई । बांटत मन धरि अति राग, इसते मुझ बढै सुहाग || १५३५॥ बिन न्योतो पर घर जाई, निज करते असन गहाई । भोजन कर निज घर आवे, व्रत नाम धिगानो पावे ॥१५३६॥ घर दसबीस । भरि खांड रकेबी तीस, बांटे ते व्रत नाम रकेबी तास, करिहै मूरखता जास ॥ १५३७॥ वनिता चैत्यालय जाही, पाछे विधि एम कराही । धर अशन थाल इक माहीं, इक जल दुहूं ढांक धराहीं ॥ १५३८॥ तिय चैत्यालयतें आवै, इक थाली आय उठावै । जो असन उघारे तीय, भोजन करि जल बहु पीय ॥ १५३९॥ जल थाल उघाडे आयी, जल पीवे बैठि रहाही । इम वरत करम पति बान्यो, सूत्रनिमें नहीं बखान्यो ॥१५४०॥ कर जुआं उत्पन्न करती हैं जिससे त्रस हिंसाका अधिक पाप होता है । कोई अपने व्रतका नाम 'जिनका व्रत' रखती हैं सो नाम रखने मात्रसे शुभ फल कैसे प्राप्त हो सकता है ? कोई घृत नामका व्रत रखती हैं वे घर घर घी बाँटती हैं उसमें मक्खियाँ पड़ कर मरती हैं उससे पापोपार्जन कर दुःख भोगती है ।।१५३२-१५३४।। कोई चूडा नामका व्रत रखती हैं वे घर घर चोटी बाँटती हैं और समझती हैं कि इससे हमारे सौभाग्यकी वृद्धि होती हैं ।। १५३५|| कोई स्त्रियाँ नेवतेके बिना ही दूसरेके घर जाकर अपने हाथसे भोजन प्राप्त करती हैं पश्चात् भोजन कर अपने घर वापिस आती हैं इस व्रतका नाम 'धिगानो व्रत' है ॥ १५३६ ॥ कोई तीस रकेबियोंको खांड भरकर तीस घर बाँटती हैं उनके इस व्रतका नाम 'रकेबी व्रत' है। कोई स्त्री मंदिर जाती है पश्चात् घरकी अन्य स्त्री एक थालीमें भोजन और एक थालीमें पानी रखकर दोनोंको अलग अलग ढाँक देती है । मंदिरसे वापिस आनेपर वह स्त्री पहले एक थाली उघाड़ती है यदि उसमें भोजन हुआ तो उसे खाकर कुछ जल पीती है । यदि पहली बार १ धिनोनी स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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