SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री कवि किशनसिंह विरचित कथामें कह्यो नेम सत्रा प्रमाणं, कथामें क्रिया जोषिता धर्म जाणं । कथामें कही मौन सप्तं निकायं, कथा मध्य भाषे जिते अंतरायं ॥ १५१८॥ २४० कथा मध्य भाषी ग्रहोकी जु शांति, कथामें कह्यो सूतकं दोइ भांति । कथा मध्य देही क्रियाको प्रमाणं, कथा मध्य पूजा विधानं बखानं ॥१५१९॥ दोहा कलीकाल कारण लही, जगतमांहि अधिकार । प्रगटी क्रिया मिथ्यातकी, हीणाचार अपार ॥। १५२०॥ तिनहि निषेधनको कथन, सुन्यो जिनागम माहि । ता अनुसारि कथा महै, कह्यो जथारथ आहि ॥१५२१॥ कल्पित व्रत-निषेध कथन दोहा श्री जिन आगममें कहे, वरत एक सौ आठ । श्रावककौ करणै सही, इह सब जागा पाठ || १५२२|| इनि सिवाय विपरीत अति, चलण थापियों मूढ । सुगम जाणि सो चलि पड्यो, सुणहु विशेष अगूढ ॥ १५२३॥ छंद चाल वनिता लखिकै लघु वेस, तिनिको इम दे उपदेस । दिनमें जीमो दुय बार, जलकी संख्या नहि धार || १५२४॥ नियम, क्रियाओंका पालन, मौनके सात स्थान, भोजनके अन्तराय, ग्रहोंकी शांति, सूतकपातकका भेद, शरीरकी क्रिया और पूजाकी विधिका वर्णन किया गया है ।। १५१४-१५१९।। कलिकालका कारण पाकर जगतमें मिथ्यात्व और हीनाचारकी अनेक क्रियाएँ प्रकट हुई है। उनका निषेध करनेके लिये जिनागममें जैसा वर्णन सुना है उसीके अनुसार यहाँ यथार्थ कथन किया है ।।१५२०-१५२१।। आगे मनसे कल्पित व्रतोंका निषेध करते हैं : : जिनागममें एक सौ आठ व्रत कहे गये हैं। श्रावकको उन व्रतोंका पालन करना चाहिये यह सर्वत्र कहा गया है || १५२२ ॥ इनके सिवाय अज्ञानीजनोंने अनेक विपरीत मतोंका प्रचलन कर रक्खा हैं और सरल जानकर उनका प्रचलन भी चल पड़ा है उनका कुछ स्पष्ट विशेष वर्णन सुनो ॥१५२३॥ Jain Education International बालक बालिकाओंकी छोटी अवस्था देखकर स्त्रियाँ ऐसा उपदेश देती है कि दिनमें दो बार भोजन करो, पानीकी संख्याका कोई नियम नहीं है । इस व्रतको वे दोकंत व्रत कहती हैं परन्तु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy